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Definitional Dictionary of International Law (English-Hindi)
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Baghdad Pact
बगदाद समझौता मध्य पूर्व के लिए क्षेत्रीय सुरक्षा संगठनों की श्रृंखला में संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रोत्साहन से निर्मित एक संगठन जिसका प्रादुर्भाव 24 फरवरी, 1955 को ईराक और तुर्की के मध्य एक परस्पर सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर करने से हुआ । अप्रैल, 1955 में ब्रिटेन, जुलाई में पाकिस्तान और नवंबर में ईरान इसके सदस्य बने । सुरक्षा के क्षेत्र में परस्पर सहयोग, एक दूसरे के मामलों में हस्तक्षेप न करना तथा अपने पारस्परिक विवादों को शआंतिमय उपायों से तय करना, इसके प्रमुख सिद्धांत थे । अप्रैल 1955 में ब्रिटेन से किए गए एक विशेष समझौते में, जिसमें ब्रिटेन बगदाद समझौते का एक सदस्य बन गाय ब्रिटेन ने ईराक पर क्रमण होने की दशा में ईराक सरकार के अनुरोध पर उसे हर प्रकार की सहायता, जिसमें सैनिक सहायता शामिल थी, देने का वचन दिया । इस क्षेत्रीय व्यवस्था में संयुक्त राज्य अमेरिका ने पूरा सहयोग काय और इन दोशों की प्रादेशिक अखंडता की गारंटी करने की भी घोषणा की । जुलाई, 1956 में स्वेज संकट से बगदाद समझौता भी संकटग्रस्त हो गया । जुलाई, 1958 में नूरी अल सईद को अपदस्थ कर जनरल कासिम ईराक में सत्तारूढ़ हुआ और उसने सत्ता में आते ही बगदाद समझौते को नकार दिया । 24 मार्च, 1959 को ईराक औपचारिक रूप से बगदाद समझौते से अलग हो गाय । बगदाद समझौते का मुख्यालय अक्टूबर, 1958 में स्थानांतरित कर दिया गया था । 21 अगस्त, 1959 को यह घोषणा की गई कि अब बगदाद समझौते को मध्यवर्ती संधि संगठन () के नाम से जाना जाएगा ।

Bandung Conference
बांहुंग सम्मेलन 29 देशों का यह सम्मेलन इंडोनेशिया के नगर बांडुंग में 29 अप्रैल, 1955 को संपन्न हुआ था । इसका उद्देश्य विश्व राजनीति में एशियाई - अफ्रीकी देशों को एक सुदृढ़ इकाई के रूप में प्रदर्शित करना था और विशअव राजनीति में उनके भावी महत्व को दर्शआना था । परंतु सम्मेलन में विभिन्न विषयों पर मतैक्य की अपेक्षा मतभेद अधिक देखने में आए । इसमें विश्व राजनीति की अनेक समस्याओं पर विचार - विमर्श किया गया, जैसे क्षेत्रीय सुरक्षा संगठन, उपनिवेशवाद, संयुक्त राष्ट्र में साम्यवादी चीन का प्रतिनिधित्व चीन के संयुक्त राज्य अमेरिका तथा एशियाई देशों के साथ संबंध, प्रजातीय पृथक्करण और भेदभाव, निःशस्त्रीकरण, एशियाई - अफ्रीकी देशों में आर्थिक, सांस्कृतिक तथा तकनीकी मामलों में सहयोग की संभावनाएँ आदि सम्मेलन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में चीन के महत्व और उसकी भूमिका को मान्यता प्राप्त हुई । सम्मेलन ने विश्व शआंति व सहयोग के दस सिद्धांतों का भी प्रतिपादन किया , जो इस प्रकार हैं :- 1. संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों तथा मूल मानवीय अधिकारों के प्रति सम्मान 2. सब राष्ट्रों की संप्रभुता और प्रादेशिक अखंडता का सम्मान 3. सभी प्रजातियों और राष्ट्रों की समानता के सिद्धांत को मान्यता 4. दूसरे देशओं के मामलों में हस्तक्षेप न करना 5. संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अनुरूप प्रत्येक देश का स्वयं अथवा सामूहिक रूप से अपनी रक्षा करने का अधिकार 6. किसी महाशक्ति की विशिषअट हितपूर्ति में निर्मित सामूहिक सुरक्षा संगठनों से दूर रहना 7. परस्पर आक्रमण न करना 8. अंतर्राष्ट्रीय विवादों को शांतिमय उपायों से तय करना 9. पारस्परिक सहयोग एवं हितों की अभिवृद्धि तथा 10. न्याय एवं अंतर्राषअट्रीय दायित्वों का सम्मान ।

Bangkok Conference
बैंकाक सम्मेलन 22 जुलाई, 1956 को बैंकाक में एक सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमें एशियाई देशओं के बीच अंतर्देशीय नौपरिवहन को सुकर बनाने के लिए एक अभिसमय स्वीकृत किया गया ।

base line
आधार रेखा समुद्री राज्यों की वह तटवर्ती रेखा जहाँ से उनके भूभागीय समुद्र की चौड़ाई मापी जाती है । इसके निरूपण के विस्तृत नियम 1956 के प्रथम जेनेवा कन्वेंशन में दिए गए हैं ।

basis of International Law
अंतर्राष्ट्रीय विधि का आधार इससे तात्पर्य यह है कि अंतर्राष्ट्रीय विधि के बाध्यकारी होने का क्या कारण है अर्थात् अंतर्राष्ट्रीय विधि को क्यों बाध्यकारी माना जाता है ? इस प्रश्न के उत्तर स्वरूप तीन विचारधाराओं अथवा सम्प्रदायों का विकास हुआ है : 1. प्राकृतिक विधि सम्प्रदाय; 2. व्यावहारवादी सम्प्रदाय; और 3. ग्रोशसवादी सम्प्रदाय । प्राकृतिक विधि सम्प्रदाय के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय विधि में बाध्यकारिता का आधार यह है कि इस विधि के सिद्धांत और नियम प्राकृतिक विधि के ही रूपांतरण मात्र हैं और प्राकृतिक विधि ही उनका स्रोत है । अतः इनका पालन करना प्राकृतिक और स्वाभाविक है । व्यवहारवादियों के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय विधि में बाध्यकारिता का आधार यह है कि यह विधि राज्यों की सहमति पर आधारित है । ग्रोशसवादियों के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय विधि में बाध्यकारिता के दोनों ही आधार हैं । अंशतः यह विधि प्राकृतिक विधि और अंशतः राज्यों की सहमति का प्रतिफल है । वर्तमान काल में ग्रोशसवादी विचारधार को स्वा सर्वाधिक मान्यता प्राप्त है ।

bay
खाड़ी समुद्र का वह भाग जो किसी राज्य के तट को काटकर भीमि घुस जाता है और जिससे तट सीधा न रहकर कट - फट जाता है । 1958 के जेनेवा सम्मेलन ने खाड़ियों के लिए तीन आवश्यक लक्षण निर्धारित किए हैं :- (1) खाड़ी के दोनों तट एक ही राज्य में हों, (2) खाड़ी का जलक्षेत्र इसके दोनों सिरों को मिलाने वाली रेखा पर खींचे गए तटवर्ती गोलार्ध से अधिक हो, तथा (3) इसके दोनों सिरों की दूरी 24 मील से अधिक न हो ।

Bay of Pigs
बे ऑफ पिग्स क्यूबा गणराज्य का वह तटवर्ती स्थान जहाँ संयुक्त राज्य अमेरिका से क्यूबा के प्रवासी नागरिकों की सशस्त्र टुकड़ी अमेरिका के सहयोग व प्रोत्साहन से इसलिए उतारी गई थी कि वह स्थानीय नागरिकों को फीडल कैस्ट्रो के विरुदूध व्यापक विद्रोह करने के लिए प्रेरित करें । परन्तु यह प्रयास निष्फल रहा । यह घटना संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा क्यूबा की सार्वभौमिकता के हनन का एक उदाहरण है ।

belligerency
युद्धस्थिति, युद्धकारिता अंतर्राष्ट्रीय युद्ध की स्थिति जिसमें दो या दो से अधिक राज्य संघर्षरत हों और उनका सशस्त्र संघर्ष अंतर्राष्ट्रीय विधि के अनुसार युद्ध हो । कभी - कभी गृहयुद्ध की स्थिति में भी कुछ दशाओं के पूरा करने पर विद्रोहकारियों को अन्य राज्यों द्वारा युद्धकारिता की मान्यता दी जा सकती है ।

belligerent
युद्धकारी वह राज्य जो किसी अन्य राज्य या राज्यों के साथ संघर्ष या युद्ध की स्थिति में हो । साधारणतया राज्य ही अंतर्राष्ट्रीय युद्ध मे युद्धकारी समझे जाते हैं । युद्ध होने पर उनके संबंध शांति विधि द्वारा नियमित न होकर युद्ध विधि द्वारा नियमित होने लगते हैं । परंतु गृहयुद्ध की स्थिति में कुछ दशाओं के पूरा होने पर विद्रोहकारी पक्ष को भी युद्धकारी की मान्यता दी जा सकती है ।

belligerent rights
युद्धकारी अधिकार अंतर्राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत स्वीकृत युद्धरत राज्यों के अधिकार जिनके अनुसार वे शत्रु राज्यों के विरूद्ध सशस्त्र कार्रवाई कर सकते हैं । विशेषकर महासमुद्र में तटस्थ व्यापार और परिवहन पर अनेक प्रतिबंध लगा सकते हैं । किसी राज्य के विद्रोहियों तता क्रांतिकारियों को ये अधिकार तब तक प्राप्त नहीं होते जब तक कि उन्हें युद्धकारिता की मान्यता नहीं मिल जाती ।


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