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Hindu Dharmakosh (Hindi-Hindi)

अमृतानुभव
महाराष्ट्र के प्रसिद्ध सन्त और नाथ सम्प्रदाय के आचार्य श्री ज्ञानेश्वर कृत त्रयोदश शताब्दी का मराठी पद्य में रचित, यह अद्वैत शैव दर्शन का अनूठा ग्रन्थ है।

अमृताहरण
गरुड़। वे अपनी माता विनता को सपत्नी की दासता से मुक्त करने के लिए सब देवताओं को जीतकर और अमृत की रक्षा करने वाले यन्त्रों को भी लाँघकर स्वर्ग से अमृत ले आये थे। पुराणों में यह कथा विस्तार से वर्णित है।

अम्बरनाथ
कोङ्कण प्रदेश स्थित शैव तीर्थ। यहाँ शिलाहार नरेश माम्बाणि का बनवाया, कोङ्कण प्रदेश का सबसे प्राचीन, मंदिर है। इस मन्दिर की कला उत्कृष्ट है। अम्बरनाथ शिव का दर्शन करने दूर-दूर से बहुत लोग आते हैं।

अम्बुवाची
वर्षा के सूचक लक्षणों से युक्त भूमि। पृथ्वी के दैवी रूप के दो पहलू है; एक उदार दूसरा विकराल। उदार पक्ष में देवी सभी जीवधारियों की माता और भोजन देने वाली कही जाती है। इस पक्ष में वह अनेकों नामों से पुकारी जाती है, यथा भूदेवी, धरतीमाता, वसुन्धरा, अम्बुवाची, वसुमती, ठकुरानी आदि।

अम्बा भवानी
अम्बा भवानी की पूजा महाराष्ट्र में 27 वीं शताब्दी में अधिक प्रचलित थी। गोन्धल नामक नृत्य देवी के सम्‍मान में होता था तथा देवी सम्बन्धी गीत भी साथा साथ गाये जाते थे।

अम्बिका
शिवपत्नी पार्वती के अनेकों नाम तथा स्वरूप हैं। हिन्दू विश्वासों में उनका स्थान शिव से कुछ ही घटकर, किन्तु अर्धनारीश्वर रूप में हम उन्हें शिव की समानता के पद पर पाते हैं। देवी, उमा, पार्वती, गौरी, दुर्गा, भवानी, काली, कपालिनी, चामुण्डा आदि उनके विविध गुणों के नाम हैं। इनका 'कुमारी' नाम कुमारियों का प्रतिनिधित्व करता है। वैसे ही इनका 'अम्बिका' (छोटी माता) नाम भी प्रतिनिधित्वसूचक ही है।

अम्बिकेय
अम्बिका का अपत्य पुरुष। कार्तिकेय, गणेश, धृतराष्ट्र। (पाणिनि के अनुसार आम्बिकेय।)

अम्बुवाचीव्रत
सौर आषाढ़ में जब सूर्य आर्द्रा नक्षत्र के प्रथम चरण में हो इस व्रत का अनुष्ठान किया जाता है। दे. वर्षकृत्यकौमुदी, 283; भोज का राजमार्त्तण्ड।

अयम् आत्मा ब्रह्म
यह आत्मा ही ब्रह्म है' - सिद्धान्त वाक्य। यह बृहदारण्यकोपनिषद् (2.5.19) का मन्त्र है और उन महावाक्यों में से एक है जो उपनिषदों के केन्द्रीय विषय आत्मा और परमात्मा के अभेद पर प्रकाश डालते हैं।

अयन
काल-विभाजन में 'अवसर्पिणी' एवं 'उपसर्पिणी' अर्थ दो अयनों का है। यह सूर्य के छः मास उत्तर रहने से (उत्तरायण) तथा छः मास दक्षिण रहने से (दक्षिणायन) बनता है। प्रत्येक भाग के छः मासों का अर्थ एक अयन होता है।


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