ईश्वरवरवादी व्यक्तिवाद
आस्था का वह स्वरूप जिसमें ईश्वर को व्यक्ति स्वरूप या व्यक्तित्व सम्पन्न माना जाता है।
Theocracy
ईश्वर तंत्र
वह राजतन्त्र जिसमें ईश्वर को एकमात्र शासक माना जाता है, कानून को दैवी इच्छा माना जाता है और धर्म तथा राज्य का तादात्म्य कर दिया जाता है।
Theocrasy
1. मिश्रदेवपूजा, मिश्रदेवोपासना : विभिन्न देवताओं की एकसाथ पूजा।
2. ईश्वर-सायुज्य : ध्यान या समाधि में आत्मा का ईश्वर से तादात्म्य।
Theodicy
ईश्वरीय-न्याय-मंडन
धर्मशास्त्र या दर्शन का वह भाग जिसमें जगत् के स्रष्टा ईश्वर के मंगलमय, सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान् होने के बावजूद सृष्टि में पाप, अन्याय और दुःख के रूप में अशुभ का जो अस्तित्व है उसका औचित्य समर्थन किया जाता है।
Theology
1. ईश्वरमीमांसा : सामान्यतः दर्शनशास्त्र की वह शाखा जिसमें ईश्वर का तथा जगत् और ईश्वर के संबंध का विवेचन किया जाता है।
2. धर्मशास्त्र : परंतु अब इस शब्द का प्रयोग धर्म-विशेष के सैद्धांतिक पक्ष के लिए अधिक होने लगा है। तदनुसार ईसाई, हिन्दू, मुस्लिम, यहूदी इत्यादि शब्दों के साथ प्रयुक्त होने पर इसमें अधिक सार्थकता आती है।
Theorem
प्रमेय
प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र में, वह प्रतिज्ञप्ति जिसे अन्य आधारभूत प्रतिज्ञप्तियों के द्वारा प्रमाणित किया जाता है, अर्थात् जो उनसे व्युत्पाद्य हो।
Theory Of Internal Relations
अंतः संबंध सिद्धांत
प्रत्ययवादियों के अनुसार :
1. संबंध का वह प्रकार जिसमें संबद्ध वस्तुओं के स्वरूप को बिना क्षति पहुँचाये, परिवर्तित या निरस्त नहीं किया जा सकता।
2. वस्तुओं के आंतरिक गुणों पर आधारित, उनके परस्पर संबंध।
Theory Of Knowledge
ज्ञान का सिद्धांत
देखिए `epistemology`।
Theory Of Relativity
सापेक्षता सिद्धांत
भौतिकी तथा ज्ञानमीमांसा की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण, दिक्काल-विषयक एक गणितीय सिद्धांत, जिसे अलबर्ट आइन्सटाइन ने 1905 में एक विशेष सिद्धांत के रूप में प्रस्तुत किया था। इसमें परंपरा के अनुसार निरपेक्ष मानी गई कुछ बातों को, जैसे असमान दूरियों पर घटनेवाली कुछ घटनाओं की एककालिकता, दो घटनाओं के मध्य के समय, किसी ठोस पदार्थ की लंबाई इत्यादि को, एक दिक्काल-निर्देश-तंत्र के चुनाव और प्रेक्षक-विशेष के सापेक्ष माना गया है तथा कुछ सापेक्ष मानी गई बातों को, जैसे रिक्त दिक् में प्रकाश के वेग को, निरपेक्ष माना गया है।
Theory Of Representative Ideas
प्रतिनिधि-प्रत्यय-सिद्धांत
वह सिद्धांत कि प्रत्यक्ष, स्मृति इत्यादि में मन वस्तुओं को अपरोक्ष रूप से नहीं बल्कि उन प्रत्ययों के माध्यम से जानता है, जो मन में उन वस्तुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं या उनके प्रतिनिधि होते हैं।