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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-II)

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कंचुकि, कंचुकी
केचुल।
सुत-पति नेह जगत इहि जान्यौ। ब्रज जुवती तिनका सों मान्यौ। काचो सूत तोरि सो डारयौ। उरग कंचुकी फिरि न निहारयौ-पृ. ३१६।
संज्ञा
[सं. कंचुकी]

कंचुकि, कंचुकी
रनिवास के दासदासियों का अध्यक्ष जो प्रायः विश्वासपात्र बूढ़ा ब्राह्मण होता था।
संज्ञा
[सं. कंचुकिन्]

कंचुकि, कंचुकी
द्वारपाल।
संज्ञा
[सं. कंचुकिन्]

कंचुकि, कंचुकी
साँप।
संज्ञा
[सं. कंचुकिन्]

कंचुकि, कंचुकी
वह अन्न जो छिलकेदार होता है जैसे चना।
संज्ञा
[सं. कंचुकिन्]

कंचुरि
साँप का केंचुल।
नैना हरि अंग रूप लुब्धै रे माई। लोकलाज कुल की मर्जादा बिसराई। जैसे चन्दा चकोर मृगीनाद जैसे। कंचुरि ज्यों त्यागि फनिक फिरत नहीं तैसे - पृ.३२१।
संज्ञा
[सं. कंचुली]

कंचुली
साँप की केंचुल।
संज्ञा
[सं.]

कंचुवा
चोली, अँगिया।
संज्ञा
[सं. कंचुकी]

कंचेरा
काच का काम करनेवाला।
संज्ञा
[सं. काँच]

कंज
ब्रह्मा।
संज्ञा
[सं.]


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