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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-II)

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कंठ
कंठा, हँसुली।
संज्ञा
[सं.]

कंठ
कंठ फूटना - (१) बच्चों का स्वर साफ होना। (२) युवावस्था में स्वर-परिवर्तन। (३)पक्षियों के गले में रेखा पड़ना। कंठ लाइ- गले लगाकर। उ. - ध्रुव राजा के चरननि परयौ। राजा कंठ लाइ हित करयौ–४ ६।
मु.

कंठगत
जो गले में अटका हो, जो निकलने को हो।
वि.
[सं.]

कंठगत
प्राण कंठगत होना- मरने लगना।
मु.

कंठमाला
गले का एक रोग जिसमें बहुत सी गाँठे पड़ जाती हैं।
संज्ञा
[सं.]

कँठला
वह गहना जिसमें नजरबट्ट, बाघनख, और दो चार ताबीज गूँथ कर बच्चे को इसलिए पहनाते हैं कि उसे नजर न लगे और अन्य आपत्तियों से वह रक्षित रहे।
संज्ञा
[हिं. - कंठ +ला (प्रत्य.)]

कंठश्री, कंठसिरी
सोने का एक जड़ाऊ गहना जो गले में पहना जाता है, कंठी।
संज्ञा
[सं.]

कंठस्थ
गले में स्थित, कंठगत।
वि.
[सं.]

कंठस्थ
कंठाग्र, जो जबानी याद हो।
वि.
[सं.]

कंठहरिया
कंठी।
सूर सगुन बँटि दियो गोकुल में अब निर्गुन को बसेरो। ताकी छटा छार कँठहरिया जो ब्रज जानो दुसेरो - ३१५४।
संज्ञा
[सं. कंठहार का अल्प,]


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