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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-II)

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कंध
कंधा।
चारि पहर दिन चरत फिरत बन, तऊ न पेट अवैहौ। टूटे कंधऽरु फूटी नावनि, कौ लौं धौं भुस खैहौं - १ - १३१।
संज्ञा
[सं. स्कंध]

कंध
सिर।
तू भुल्यौ दससीस बीउ भुज, मोहि गुमान दिखावत। कंध उपारि डारिहौं भूतल, सूर सकल सुख पावत - ९ - १३३।
संज्ञा
[सं. स्कंध]

कंध
तने का ऊपरी भाग जहाँ से शाखाएँ फूटती हैं।
संज्ञा
[सं. स्कंध]

कंधनी
मेखला, करधनी।
संज्ञा
[हिं. करधनी]

कंधर
गरदन
संज्ञा
[सं.]

कंधर
बादल।
संज्ञा
[सं.]

कंधरा
गरदन।
संज्ञा
[हिं. कंधर]

कंधा
गले और मोढ़े के बीच का भाग।
संज्ञा
[सं. स्‍कंध, प्रा. कंध]

कंधा
बाहुमूल, मोढ़ा।
संज्ञा
[सं. स्‍कंध, प्रा. कंध]

कंधार, कंधारी
केवट, मल्‍लाह, माँझी।
कहो कपि कैसे उतरयौ पार। दुस्तर अति गंभीर बारिनिधि सत जोजन बिस्तार। राम प्रताप सत्य सीता को यहै नाव कंधार। बिन अधार छन में अवलंघयौ आवत भई न बार - ९ - ८७।
संज्ञा
[सं. कर्णधार]


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