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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-II)

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कंधार, कंधारी
पार लगानेवाला।
संज्ञा
[सं. कर्णधार]

कँधावर
चादर या दुपट्टा जो कंधे पर डाला जाय।
संज्ञा
[हिं. कंधा+आवर (प्रत्य.)]

कँधेला
साड़ी का वह भाग जो स्त्रियां कंधे पर डालती हैं।
संज्ञा
[हिं. कंधा+एला (प्रत्य.)]

कँधैया
श्रीकृष्ण।
संज्ञा
[हिं. कन्हैया]

कंप
काँपना, कँपकँपी, धड़कन।
संज्ञा
[सं.]

कंप
एक सात्विक अनुभाव।
संज्ञा
[सं.]

कँपकँपी
थरथराहट, कंपन।
संज्ञा
[हिं. काँपना]

कंपत
भयभीत होकर, डरा हुआ।
क्रृपासिंधु पै केवट आयौ, कंपत करत सो बात। चरन-परसि पाषान उड़त है, कत बेरी उड़ि जात - ९ - ४१।
कि.अ.
[हिं. काँपना]

कंपत
शीत से काँपता है।
हा हा करति लि घोष कुमारि। सीत तें तन कँपत थर-थर बसन देहु मुरारि. - ७८९।
कि.अ.
[हिं. काँपना]

कँपतिँ
शीत से काँपती हैं।
थर- थर अंग कपतिँ सुकुमारी - ७९९।
क्रि.अ .
[सं. कंपन, हिं. कॅपना]


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