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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-II)

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कँडरा
रक्त की नाड़ी।
संज्ञा
[सं.]

कंडाल
तुरही नामक बाजा।
संज्ञा
[सं, करनाल]

कंडाल
ढोल नामक बरतन।
संज्ञा
[सं, करनाल]

कंत
पति, स्वामी।
सूरदास लै जाउँ तहाँ जहँ रघुपति कंत तुम्हार - ६ - ८६।
संज्ञा
[सं. कांत]

कंत
ईश्वर।
संज्ञा
[सं. कांत]

कंता
पति, स्वामी।
छीर सिंधु अहि सयन मुरारी। प्रभु स्रवननि तहँ परी गुहारी। तब जान्यौ कमला के कंता। दनुज भार पुहुनी में भंता - २४५६।
संज्ञा
[सं. कांत]

कंथ
पति, स्वामी।
संज्ञा
[सं. कांत]

कंथा
गुदड़ी, कथरी।
(क) सीस सेली कंस मुद्रा कनक बीरी बीर। बिरह भस्म चढ़ाइ बैठी सहज कंथा चीर - ३१२६। (ख) सृ गी मुंद्रा कनक खपर करिहौं जोगिन भेष। कंथा पहिरि विभूति लगाऊँ जटा बँधाऊँ केस - २७५४। (ग) वे मारे सिर पटिया पारे कंथा काहि उढ़ाऊँ - ३४६६।
संज्ञा
[सं.]

कंथारी
एक वृक्ष।
संज्ञा
[सं.]

कंथी
फकीर जो गुदड़ी धारण करे।
संज्ञा
[सं. कंथा=गुदड़ी]


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