देवार्पित वस्तु जो विसर्जन के पूर्व ‘नैवेद्य’ और पश्चात ‘निर्माल्य’ कहलाती है। शिव जी के अतिरिक्त सब देवताओं के निर्माल्य- पुष्प और मिष्ठान्न--ग्रहण किये जाते हैं।
उ.- (क) अब तौ सूर यहै बनि आई, हर कौ निज पद पाऊँ। ये दससीस ईस निरमायल, कैंसैं चरन छुवाऊँ-९-१३२। (ख) हरि के चलत भईं हम ऐसी मनहु कुसुम निरमायल दाम-२५३०।