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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-VI)

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निरास
निराश।
उ.- (क) ताकत नहीं तरनिजा के तट तरुवर महा निरास-सा.२६। (ख) तिपीपी पल माँझ कीनो निपट जीव निरास-सा.३८। (ग) सात दिवस जल बरषि सिराने ताते भए निरास-९७४।
वि.
[हिं. निराश]

निरासन
आसनरहित।
वि.
[सं.]

निरासन
दूर करना, निराकरण।
संज्ञा

निरासन
खंडन।
संज्ञा

निरासा
नाउम्मेदी, निराशा।
संज्ञा
[सं. निराशा]

निरासी
हताश, नाउम्मेद।
वि.
[सं. निराशा]

निरासी
उदासीन, विरक्त।
उ.-आप काज कौन हमको तजि तब ते भए निरासी-पृ. ३२५ (४२)।
वि.
[सं. निराशा]

निरासी
जहाँ या जिसमे चित्त को आनंद न मिले, वेरौनक।
उ.-सूर स्याम बिनु यह बन सूने ससि बिनु रौनि निरासी-३४२२।
वि.
[सं. निराशा]

निराहार
जो बिना भोजन किये हो।
वि.
[सं.]

निराहार
जिस (व्रत आदि) में भोजन किया ही न जाय।
वि.
[सं.]


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