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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-VI)

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निरुक्त
व्याख्या किया हुआ।
वि.
[सं.]

निरुक्त
नियुक्त, स्थापित, प्रतिष्ठित।
वि.
[सं.]

निरुक्त
छह वेदांगों में चौथा अंग।
संज्ञा

निरुक्त
एक काव्यालंकार।
उ.-यह निरुक्त की अवध बाम तू भइ ‘सूर’ हत सखी नवीन-सा. ९६।
संज्ञा
(सं. निरुक्ति

निरुक्ति
शब्द की व्युत्पत्ति।
संज्ञा
[सं.]

निरुच्छवास
सँकरा, संकीर्ण (स्थान)।
वि.
[सं.]

निरुज
नीरोग।
वि.
[हिं. नीरुज]

निरुत्तर
जिसका कुछ उत्तर न दिया जा सके, लाजवाब।
वि.
[सं.]

निरुत्तर
जो उत्तर न दे सके।
वि.
[सं.]

निरुत्साह
जिसमें उत्साह न हो।
वि.
[सं.]


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