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Vrihat Muhavara Kosh (Khand 1)

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चक्र रचना
किसी को फंसाने के लिए जाल फैलाना।

चख चलना
झगड़ा होना।
हमने सारी दास्तान सुनी। बड़ी चख चल गयी (आज़ाद.-प्रेमचंद, 132)।

चख डालना
सब कुछ शेष कर देना।
बाप जो थोड़ा बहुत छोड़ गया था, सब छ ही महीनों में चख डाला।

चखचख चलना, चखचख होना
झगड़ा होना; असंतोष होना।
हिसाब में बहुत मीन मेख निकालने के कारण प्रायः ही रिखीराम की मास्टर जी से चखचख हो जाती थी (झूठा. (2) - यशपाल, 353)।

चखचख होना
दे. चखचख चलना।

चख-पुतरी बनाना
अत्यन्त प्यार करना।
मैं उसे चख-पुतरी बनाकर रखूँगी, उसे हाथों-हाथ लिए रहूँगी।

चखाचखी होना
प्रतिद्वंद्विता होना।
दोनों में खूब चखाचखी है, मुझे बड़ा आनन्द आ रहा है।

चखौतियां करना
मौज करना।
दोनों के पास मौरूसी जागीरें थीं; जीविका की कोई चिन्ता न थी, घर में बैठे चखौतियाँ करते थे (मान. (3) - प्रेमचंद, 266)।

च-च करना
दुःख प्रकट करना।
अब च-च करने से क्या लाभ। पहले सोचा होता।

चचा
बहुत चालाक; बढ़कर।
मगर यात्रियों को क्या कहूँ, वे हमारे भी चचा निकले (दिल.-जी., 27)।


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