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Vrihat Muhavara Kosh (Khand 1)

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आंख (आंखों) का तिल खो देना
ग्रंधा हो जाना।
क्यों न खो देंगे आंख का तिल वे आंख का तेल जो निकालेंगे (चोदे. -हरिऔध, 14)।

आंख (आंखों) का तेल निकलना
बारीक काम करने से आंखों पर बहुत जोर पड़ना या डालना।
कलकत्ते के प्रेस बड़े ही रद्दी हैं। प्रूफ पढ़ते-पढ़ते आंखों का तेल और कमर का कचूमर निकल गया (पद्य. के पत्र - पद्य. शर्मा, 150)।

आंख (में) कानासूर
बहुत अप्रिय या दुखदायी।
तुम तो उनकी आंखों का नासूर हो गये हो।

आंख (आंखों) का नूर
दे. आंख का उजाला।

आंख (आंखों) का परदा
आंखों से प्रकट होने वाला लज्जा का नैसर्गिक भाव।
परदा तो आंख का होता है। कहीं चादर हया सिखाती है? (आजाद. - प्रेमचंद, 238)।

आंख (आंखों का परदा उठना, आंख खुलना, आंख हटना
अज्ञान दूर होना।
खुल रहा है दिन ब दिन परदा मगर आंख का परदा नहीं अब भी खुला )चुभते. - हरिऔध, 57)।

आंख (आंखों) का परदा उठा देना
निर्लज्ज हो जाना।
उसने आंखों का पर्दा उठा दिया है, वह सब कुछ कर सकती है।

आंख (आंखों) का परदा खुलना
दे. आंख का पर्दा उठना।

आंख (आंखों) का परदा हटना
दे. आंख का पर्दा उठना।

आंख (आंखों) का पानी
लज्जा, शील या मर्यादा का भाव।
फूटें, पानी न हो पड़ी भी जिन आंखों में (साकेत-गुप्त, 448)।


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