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Vrihat Muhavara Kosh (Khand 1)

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आंख (आंखें) चमकना
खुश होना।
मुझे हंसते-खेलते देखकर उसकी आंखें चमकने लगती थीं (सु. सु. - सुदर्शन, 71)।

आंख (आंखें) चमकना
तेज रोशनी के कारण दृष्टि स्थिर न रह सकना।

आंख (आंखें) चमकाना, आंख झपकना
आंखों से इशारा करना, आंख मटकाना।
वह कोठे के ऊपर खड़ी आँखें चमकाती रही।

आंख (आंखें) चरने जाना
सामने की चीज पर नजर न होकर कहीं और होना।
आंख चरने न जो गई होती दुख तले आंख के न क्यों आता (बोल.-हरिऔध, 53)।

आंख (आंखें) चलना
आंख से आंसू बहना।
हा ! करुनामय नाथ हो! केसौ! कृष्ण मुरारि। फाटि हिय दृग चह्यौ (नंद. ग्रंथा. - नंद.; 163)।

आंख (आंखें) चलाना
आंखों से इशारा करना।
कैसी आंखें चलाती है। अंगों को कितना फड़काती है (मृग. - वृं . वर्मा, 146)।

आंख (आंखें) चार करना या होना
सामना करना या होना।
रानी-बहिना और मिश्रजी की आंखें फिर चार हुई (परती. रेणु, 491)।

आंख (आंखें) चार करना या होना
प्रेमारंभ होना।
वह कौन घड़ी थी जिसमें ये आंखें चार हुई थीं(नूर. -भक्त, 27)।

आंख (आंखें) चीर कर देखना
ध्यान से देखना, घूरना।
इस तरह आंख चीर कर क्या देख रहे हो?

आंख (आंखें) चुरा जाना
छिपकर निकल जाना या सामना न करना।
मेरे सामने कहाँ आया, आंखें चुरा गया।


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