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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-X)

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सेवकनी, सेवकिन, सेवकिनि, सेवकिनी, सेविका, सेविकिन
स्थान-विशेष में नियमित रूप से वास करनेवाली।
संज्ञा
स्त्री.
(सं. सेवक)

सेवकु
सेवक।
संज्ञा
पुं.
(सं. सेवक)
उ.-सेवकु करै स्वामि सौं सरवर, इनि बातनि पति जाइ-९८५।

सेवत
टहल, सेवा या परिचर्या करता है।
क्रि.स.
(हिं. सेवना)
उ.-(क) सिव-विरंचि-सुरपति सब सेवत प्रभु-पद-चाए-१-१६३। (ख) बिबिध आयुध घरे सुभट सेवत खरे-९-१२९।

सेवत
पूजा, उपासना या आराधना करके या करता है।
क्रि.स.
(हिं. सेवना)
उ.- (क)स्वपचहु स्रेष्‍ठ होत पद-सेवत बिनु गोपाल द्विज जन्म न भावै-१-२३३। (ख) कर्मजोग करि सेवत कोई-१० उ.-१२७।

सेवति, सेवती
पंद्रहवाँ नक्षत्र जिसकी वर्षा के जल से मोती उपजना माना जाता है।
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्वाति)

सेवति, सेवती
सफेद गुलाब।
संज्ञा
स्त्री.
(सं. सेवती)
उ.-(क) जाही जूङी सेवती करना कनिआरी-१८२२। (ख) फूले मरुवो मोगरो सेवती फूल-२४०५।

सेवन
टहल, परिचर्या, सेवा।
संज्ञा
पुं.
(सं.)

सेवन
उपासना, आराधना।
संज्ञा
पुं.
(सं.)

सेवन
नियमित प्रयोग या व्यवहार।
संज्ञा
पुं.
(सं.)

सेवन
लगातार रहना, वास करना।
संज्ञा
पुं.
(सं.)
उ.- कोउ कहे तीरथ सेवन करो, कोउ कहै दान जज्ञ बिस्तरी-१-३४१।


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