सेवक या भक्त का अंजुली में कूछ लेकर स्वामी या उपास्य को अर्पण करना।
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
सेवा
टहल, परिचर्या।
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
उ.-राजनीति अरु गुरु की सेवा, गाइ-बिग्न प्रतिपारे-९-५४।
सेवा
नौकरी, चाकरी।
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
सेवा
पूजा, उपासना, आराधना।
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
उ.-(क)जिहिं जिहिं भाइ करत जन सेवा अंतर की गति जानत-१-११। (ख) ब्रह्मा महादेव तै को बड़, तिनकी सेवा कछु न सुधारी-१-३४। (ग) तजि सेवा बैकुंठनाथ की, नीच नरनि कैं संग रहै-१-५३। (घ) मनमा और मानसी सेवा दोउ अगाध करि जानौ-१-२११। (ङ) जोग न जज्ञ, ध्यान नहिं सेवा,संत-संग नहिं ज्ञान-१-३०४।
मुहा.- सेवा में-पास, समीप, सामने।
सेवा
आश्रय, शरण।
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
सेवा
रक्षा, संरक्षण।
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
सेवा
उपभोग।
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
सेवाति, सेवाती
पंद्रहवाँ नक्षत्र जिसकी वर्षा के जल से मोती का उत्पन्न होना माना जाता है।
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. स्वाती)
सेवाति, सेवाती
बूंदसेवातीस्वाती नक्षत्र की वर्षा के जलकी दूँद।
पद.
सेवाति, सेवाती
बूंदसेवाती वह दुष्प्राप्य वस्तु जिसके प्राप्त होने पर असीम प्रसन्नता हो।