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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-V)

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थाके
क्रि. अ. भूत.
(हिं. थकना)
थक गये।
उ.— आँखिनि अंध, स्त्रवन नहिं सुनियत, थाके चरन समेत— १-२९६।

थाके
क्रि. अ. भूत.
(हिं. थकना)
थिर या अचल हो गये।
उ.— मेरे साँवरे जब मुरली अधर धरी।¨¨। चर थाके, अचल टरे—६२३।

थाके
क्रि. अ. भूत.
(हिं. थकना)
हार गये, सफल न हुए।
उ.— सूर गारूड़ी गुन करि थके, मंत्र न लागत थर तैं—७४४।

थाके
क्रि. अ. भूत.
(हिं. थकना)
मंत्र-मुग्ध-से रह गये।
उ.—धरनि जीव जल-थल के मोहे नभ-मंडल सुर थाके—१७५५।

थाकै
क्रि. अ.
(हिं. थकना)
थक जाय, क्लांत या श्रांत हो जाय।
उ. — अचला चलै, चलत पुनि थाकै, चिरंजीवि सो मरई—६-७८।

थाकौ
क्रि. अ.
(हिं. थकना)
थक गया।
उ.— हा करूनामय कुंजर टेग्यौ, रह्यौ नहीं बल, थाकौ—१-११३।

थाक्यौ
क्रि. अ. भूत.
(हिं. थकना)
थक गया।
उ. —थाके हस्त, चरनगति थाकी, अरू थाक्यौ पुरूषारथ—१-२८७।

थाक्यौ
क्रि. अ. भूत.
(हिं. थकना)
स्थिर या अचल हो गया।
उ. —रथ थाक्यो मानो मृग मोहे नाहिंन कहूँ चंद को टरिबो—२८६०।

थाक्यौ
क्रि. अ. भूत.
(हिं. थकना)
मुग्ध हो गये।
उ. —सुंदर बदन री सुख सदन स्याम को निरखि नैन मन थाक्यौ—२५४६।

थाट
संज्ञा
पुं.
(हिं. ठाट)
ढाँचा, पंजर।


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