logo
भारतवाणी
bharatavani  
logo
Knowledge through Indian Languages
Bharatavani

Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-V)

Please click here to read PDF file Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-V)

थित
वि.
(सं. स्थित)
रखा हुआ, स्थापित।

थिति
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थिति)
ठहराव, स्थिरता।

थिति
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थिति)
ठहरने का स्थान।

थिति
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थिति)
रहने-ठहरने का भाव।

थिति
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थिति)
बने रहने या रक्षित होने का भाव, रक्षा।
उ.—तुमहीं करत त्रिगुन बिस्तार। उतपति, थिति, पुनि करत सँहार-७-२१

थिति
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थिति)
अवस्था, दशा।

थिर
वि.
(सं. स्थिर)
जो चलता हुआ या हिलता-डोलता न हो, ठहरा हुआ।

थिर
वि.
(सं. स्थिर)
शांत, धीर, अचंचल, अविचलित।

थिर
वि.
(सं. स्थिर)
जो एक ही अवस्था में रहे, स्थायी, अविनाशी।
उ.—(क) सूरदास कछु थिर न रहैगौ, जो आयौ सो जातौ—१-३०२। (ख) जीवन जन्म अल्प सपनौ सौ, समुझि देखि मन माहीं। बादर-छाँइ, धूम-घौराहर, जैसैं थिर न रहाहीं—१-३१९। (ग) मरन भूलि, जीवन थिर जान्यौ बहु उद्यम जिय धारयौ—१-३३६। (घ) चेतन जीव सदा थिर मानौ—५-४। (च) नर-सेवा तैं जो सुख होइ; छनभंगुर थिर रहे न सोइ-७-२। (छ) असुर कौ राज थिर नाहिं देखौं— ८-८।

थिरक
संज्ञा
पुं.
(हिं. थिरकना)
नाचते समय पैरों का हिलना-डोलना या उठना-गिरना।


logo