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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-V)

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थाई
वि.
(सं. स्थायिन्, स्थायी)
स्थिर रहनेवाला।

थाई
संज्ञा
पुं.
बैठक, अथाई।

थाई
संज्ञा
पुं.
गीत का स्थायी या ध्रुव पद जो गाने में बार-बार कहा जाता है।

थाक
संज्ञा
पुं.
(सं. स्था)
सीमा।

थाक
संज्ञा
पुं.
(सं. स्था)
ढेर।

थाक
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. थकना)
थकने का भाव।

थाकना
क्रि. अ.
(हिं. थकना)
थक जाना, शिथिल होना।

थाकी
क्रि. अ. भूत.
(हिं. थकना)
थक गयी, शिथिल हो गयी।
उ.—स्त्रवन न सुनत, चरन-गति थाकी, नैन भए जलधारी—१-११८।

थाकी
क्रि. अ. भूत.
(हिं. थकना)
हार गयी, ऊब गयी, परेशान हो गयी।
उ.—(क) बार-बार हा-हा करि थाकी मैं तट लिए हँकारी— ११४१। (ख) बुधि बल छल उपाइ करि थाकी नेक नहीं मटके—१८५२।

थाकु
संज्ञा
पुं.
(हिं. थाक)
ढेर, राशि, समूह, थोक।


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