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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-V)

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थापि
क्रि. स.
(हिं. थापना)
प्रतिष्ठित या स्थापित करके।

थापिया, थापी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. थापना)
चिपटा- और चौड़ा काठ का दुकड़ा।

थापी
वि.
(हिं. थापना)
लिपा हुआ, सना हुआ, लिप्त।
उ.—कामी, बिबस कामिनी कैं रस, लोम-लालसा थापी-१-१४.।

थापी
संज्ञा
पुं.
प्रतिष्ठित या स्थापित करनेवाला।

थापे
क्रि. स.
(हिं थापना)
प्रतिष्ठित किया।
उ.—परसुराम ह्वै के द्विज थापे दूर कियो भुवि भार-सारा, १३९।

थापे
संज्ञा
पुं. बहु.
(हिं. थापा)
रोली-चंदन आदि के हाथ से लगाये गये छापे या चिन्ह।
उ.—घर-घर थापे दीजिए घर-घर मंगलचार-९३३।

थापै
क्रि. स.
(हिं. थापना)
स्थापित करता है, जमाता है।
उ.—ग्वालनि देखि मनहिं रिस काँपै। पुनि मन मैं भय अंकुर थापै-५८५।

थापैंगे
क्रि. स.
(हिं. थापना)
प्रतिष्ठित या स्थापित करेंगे।
उ.—पुनि वलिराजहिं स्वर्गलोक में थापैंगे हरि राइ—सारा. ३४६।

थाप्यो, थाप्यौ
क्रि. स.
(हिं. थापना)
प्रतिष्ठित या स्थापित किया।
उ.— (क) जिनि जायौ ऐसौ पूत, सब सुख-करनि फरी। थिर थाप्यौ सब परिवार, मन की सूल हरी—१.-२४। (ख) जिहिं बल बिप्र तिलक दै थाप्यौ, रच्छा करी आप बिदमान—१.-१२.। (ग) इंद्रहिं मोहि गोबर्धन थाप्यो उनकी पूजा कहा सरै-६५३। (घ) मारि म्लेच्छ धर्म फिरि थाप्यो— सारा. ३२०।

थाम
संज्ञा
पुं.
(सं.. स्तंभ, प्रा. थंभ)
खंभ, स्तंभ।


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