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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-VI)

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निबही
निभी है, बीती है।
उ.- सुमिरन, ध्यान, कथा हरिजू की, यह एकौ न रही। लोभी, लंपट, बिषयिनि सौं हित, यौं तेरी निबही -१-३२४।
क्रि. अ.
[हिं. निबाहना]

निबही
निर्वाह किया, पालन किया, रक्षा की।
उ.- रही ठगी चेटक सौ लाग्यौ, परि गई प्रीति सही।¨¨¨¨¨। सूर स्याम पै ग्वालि सयानी सरबस दै निबही - १०-२८१।
क्रि. अ.
[हिं. निबाहना]

निबहैगी
निर्वाह हो जायगा।
उ.- हम जान्यौ ऐसेहिं निबहैगी उन कछु औरै ठानी - ३३५९।
क्रि. अ.
[हिं. निबहना]

निबहौं
पार पाऊँगा, मुक्ति या छुटकारा पाऊँगा।
उ.- माधौ जू, सो अपराधी हौं। जनम पाइ कछु- भलौ न कीन्हौ, कहौ सु क्यों निबहौं - १-१५१।
क्रि. अ.
[हिं. निबाहना, निबहना]

निबहौगे
पार पाओगे, बचोगे, छुट्टी पाओगे, छुटकारा मिलेगा।
उ.- लरिकनि कौं तुम सब दिन भुठवत मोसौं कहा कहौगे। मैया मैं माटी नहिं खाई, मुख देखौं, निबहौगे - १०-२५३।
क्रि. अ.
[हिं. निबहना]

निबह्यौ
निर्वाह किया, पूरा किया, पाला।
उ.- सूरदास धनि धनि वह प्रानी, जो हरि कौ ब्रत लै निबह्यौ - २-८।
क्रि. अ.
[हिं. निबाहना]

निबारयौ
रोका, दूर किया, हटाया।
उ.- दुर्बासा कौ साप निबारयौ, अंबरीषपति राखी - १-१०।
क्रि. स.
[हिं. निवारना]

निबाह
निबाहने की क्रिया या भाव।
संज्ञा
[सं. निर्वाह]

निबाह
संबंध, क्रम या परंपरा का निर्वाह।
उ.- कीन्हे नेह-निबाह जीव जड़ ते इत उत नहिं चाहत - १-२१०।
संज्ञा
[सं. निर्वाह]

निबाह
(वचन आदि का) पालन या पूर्ति।
संज्ञा
[सं. निर्वाह]


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