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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-VI)

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निमि
राजा इक्ष्वाकु के एक पुत्र जिनसे मिथिला का राजवंश चला माना गया है। इनका स्थान मनुष्य की पलकों पर कहा जाता है।
उ.- पलक वोट निमि पर अनखाती यह दुख कहा समाइ - ३४४४।
संज्ञा
[सं.]

निमि
आँख का झपकना, निमेष।
संज्ञा
[सं.]

निमित
के लिए, हेतु, कारण।
उ.- अस्व-निमित उत्तर दिसि कैं पथ गमन धनंजय कीन्हौं - १-२९।
संज्ञा
[सं. निमित्त]

निमित्त
हेतु, लिए, वास्ते, कारण।
उ.- (क) मेरौ बचन मानि तुम लेहु। सिव-निमित्त आहुति जनि देहु - ४-५। (ख) वाहि निमित्त सकल तीर्थ स्नान करि पाप जो भयो सो सब नसाई - १० उ. ५८।
संज्ञा
[सं.]

निमित्तक
जनित, सहेतुक।
वि.
[सं.]

निमिराज
निमिवंशी राजा जनक।
संज्ञा
[सं.]

निमिष
आँख मिचना या झपकना, निमेष।
संज्ञा
[सं.]

निमिष
क्षण भर का समय, पलक मारने भर का समय।
उ.- (क) सूरदास प्रभु आपु बाहुबल कियौ निमिष मैं कीर - ९-१५८। (ख) सूर हरि की निरखि सोभा, निमिख तजत न मात - १०-१००।
संज्ञा
[सं.]

निमिषहूँ
पल भर भी, क्षण मात्र को भी।
उ.- बिमुख भए अकृपा न निमिषहूँ, फिर चितयौं तौ तैंसैं - १-८।
संज्ञा
[सं. निमिष + हूँ (प्रत्य.)]

निमिषित
मिचा या मुँदा हुआ।
वि.
[सं.]


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