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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-VI)

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हिन्दी का तेईसवाँ व्यंजन और पवर्ग का तीसरा वर्ण। यह अल्पप्राण ओष्ठय वर्ण है।

बंक
टेढ़ा, तिरछा।
उ.-(क) कुंतल कुटिल, मकर कुंडल, भ्रुव नैन-बिलोकनि बंक-१०-१५४। (ख) लोचन बंक बिसाल चितै कै रहत तब हो सबके मन-२५७३। (ग) बं बिलोकनि लगी लोभ सम सकति न पँख पसारि-२७१७।
वि.
[सं. वक्र, वंक]

बंक
विक्रमी।
वि.
[सं. वक्र, वंक]

बंक
दुर्गम।
वि.
[सं. वक्र, वंक]

बंकट
टेढ़ा, तिरछा।
उ.-(क) ठठकति चलै मटकि मुँह मोरै बंकट भौंह मरोरै। (ख) भृकुटि बंकट चारु लोचन रही जुवती देखी। (ग) गज उरोज बर बाजि बिलोचन बंकट बिसद बिसाल मनोहर-१९०६।
वि.
[हिं. बंक]

बंकट
दुर्गम।
उ.-मनो कियो फिंरि मान मवासों मन्मथ बंकट कोट-२२१८।
वि.
[हिं. बंक]

बंकति
बहुत टेढ़ी।
उ.-बंकति भौंह चपल अति लोचन बेसरि रस मुकताहल छायो-२०६३।
वि.
[हिं. बंक + अति]

बंका
टेढ़ा, तिरछा।
वि.
[हिं. बंक]

बंका
बाँका।
वि.
[हिं. बंक]

बंका
बली, पराक्रमी।
वि.
[हिं. बंक]


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