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Rajaneetivijnan Paribhasha Kosh (English-Hindi)
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Quadruple Alliance
चतुर्राष्ट्र मैत्री, चतुर्राष्ट्र सहबंध 1. 2 अगस्त, 1718 को स्पेन के विरुद्ध इंग्लैंड, फ्रांस, नीदरलैंड (हालैंड) तथा ऑस्ट्रिया द्वारा हस्ताक्षरित मैत्री संधि। इसका उद्देश्य स्पेन द्वारा इटली पर आधिपत्य स्थापित करने के प्रत्यत्नों को रोकना और उन्हें विफल बनाना था। 2. 20 नवम्बर, 1815 को पेरिस की द्वितीय संधि के साथ-साथ चार राष्ट्रों के मध्य संपन्न हुई मैत्री की संधि। इसमें आस्ट्रिया, ग्रेट ब्रिटेन, प्रशिया तथा रूस सम्मिलित थे और बाद में कुछ अन्य देश सम्मिलित हो गए। वाटरलू के स्थान पर, ड्यूक ऑफ विलिंग्टन के नेतृत्व में, इन राष्ट्रों के समन्वित और समेकित प्रयत्नों के फलस्वरूप नैपोलियन को पदच्युत कर दिया गया। इस संधि का उद्देश्य पेरिस तथा वियना की संधियों के निर्णयों का अनुपालन कराना तथा फ्रांसीसी सैन्यवाद की रोकथाम कराना था। इसके अंतर्गत यह भी निर्णय किया गया था कि संशय संबंधी समस्याओं और पारस्परिक हितों के संबंध में विचार-विमर्श करने के लिए समय- समय पर चारों राष्ट्र एक-दूसरे से संपर्क स्थापित करेंगे। आगे चलकर इस गठबंधन ने राजतंत्र के विरुद्ध हुई क्रांतियों का दमन करने के लिए सैनिक हस्तक्षेप किया परन्तु स्पेन के उपनिवेशों के स्वाधीनता संग्राम के प्रश्न पर ब्रिटेन ने किसी सैनिक कार्यवाही का विरोध किया और गठबंधन में दरारें पड़ने लगीं। 3. सन् 1834 में ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस, स्पेन तथा पुर्तगाल द्वारा स्थापित मैत्री। ग्रेट ब्रिटेन तथा फ्रांस ने, पुर्तगाल में माइगल के विरुद्ध मैरिया तथा स्पेन में, कारलौस के विरुद्ध इसाबेला के राजसिहासन पर दावे का समर्थन किया था।

Quasi judicial
अर्ध न्यायिक विधि की व्यवस्था के अंतर्गत कार्यपालिका अधिकारियों अथवा अंगों द्वारा न्याय प्रशासन का कार्य। इसे प्रायः प्रशासकीय न्याय कहते हैं और इसकी प्रक्रिया अर्ध न्यायिक मानी जाती है। उदाहरणार्थ, किसी मामले की जाँच-पड़ताल (जिसमें साक्ष्य अथवा गवाही भी सम्मिलित है) पर विचार-विमर्श करने के पश्चात् किसी उच्च प्रशासकीय अधिकारी द्वारा दिया गया आदेश।

Queen's Bench Division
क्वींस बैन्च डिवीज़न ब्रिटेन के उच्च न्यायालय की एक पीठ।

Queen's consent
रानी की सहमति ब्रिटेन की पार्लियामेन्ट द्वारा पारित विभिन्न प्रकार के विधेयकों को प्रदान किया गया रानी अथवा राजा का अनुमोदन जिसके परिणामस्वरूप वे विधेयक राज्य की विधि का रूप धारण कर लेते हैं। अब यह मात्र औपचारिकता रह गई है और यह विश्वास किया जाता है कि रानी संसद द्वारा पारित किसी विधेयक को अस्वीकृत नहीं कर सकती।

Question hour
प्रश्न काल लोक सभा, राज्य सभा तथा विधान मंडलों की प्रत्येक बैठक का पहला घंटा जिसमें सदस्य मंत्रियों से उनके संबद्ध विभागों के विषय में प्रश्न पूछते हैं तथा मंत्री उन प्रश्नों का उत्तर देते हैं। संसदीय प्रश्न विधानांग द्वारा कार्यपालिका पर नियंत्रण रखने का एक महत्वपूर्ण उपाय है। भारत की लोकसभा के प्रक्रिया तथा कार्यसंचालन संबंधी नियम 41(2) में प्रश्नों की ग्राहयता की विभिन्न शर्तें वर्णित हैं जिनमें प्रमुख ये हैं-उसमें प्रतर्क, अनुमान, व्यंगात्मक पद, अभ्यारोप विशेषण तथा मानहानिकारक कथन नहीं होंगे। उसमें किसी व्यक्ति की पदेन या सार्वजनिक हैसियत के अतिरिक्त उसके चरित्र अथवा आचरण के विषय में प्रश्न नहीं पूछा जाएगा। उसमें व्यक्तिगत रूप से दोषारोपण नहीं किया जाएगा तथा न ही यह दोषारोपण ध्वनित होगा इत्यादि। प्रश्न तीन प्रकार के होते हैं - तारांकित प्रश्न, अतारांकित प्रश्न तथा अल्पसूचना प्रश्न। तारांकित प्रश्न वह है जिसका सदस्य सदन में मौखिक उत्तर चाहता है तथा जिस पर वह तारांक लगा देता है। अतारांकित प्रश्न पर पूरक प्रश्न नहीं पूछे जा सकते। अतारांकित प्रश्नों के उत्तर लिखित रूप में दिए जाते हैं। तारांकित अथवा अतारांकित प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करने के लिए प्रत्येक सदस्य को 10 दिन पूर्व सूचना देनी पड़ती है। अल्प सूचना प्रश्न 10 दिन की अवधि से कम समय की सूचना पर भी पूछा जा सकता है। यदि लोकसभा के अध्यक्ष की यह राय हो कि संबद्ध प्रश्न अविलंबनीय प्रकार का है तो वह निर्देश दे सकता है कि मंत्री यह बताएँ कि वह उत्तर देने की स्थिति में हैं या नहीं और यदि हैं तो किस तिथि को। यदि संबंधित मंत्री उत्तर देने के लिए सहमत हो तो ऐसे प्रश्न का उत्तर उसके द्वारा दर्शाए गए दिन को दिया जाएगा और वह प्रश्न मौखिक उत्तर के लिए प्रश्न सूची में दिए गए प्रश्नों को निबटाए जाने के तुरन्त बाद पुकारा जाएगा। यदि मंत्री अल्पसूचना पर प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थ है तथा अध्यक्ष की राय हो कि प्रश्न इतने लोक महत्व का है कि सदन में उका मौखिक उत्तर दिया जाना चाहिए तो वह निर्देश दे सकता है कि प्रश्न दस दिन की सूचना की अवधि पूरी होने पर प्रश्न-सूची में प्रथम प्रश्न के रूप में रखा जाए।

Quid pro quo
प्रतिदान किसी वस्तु या लाभ या रियायत के लिए प्रदत्त वस्तु, लाभ या रियायत। बहुधा राजनय में वार्तालाप के दौरान सौदेबाजी में यह प्रक्रिया अथवा युक्ति दृष्टिगोचर होती है।

Quisling
क्विज़लिंग, देशद्रोही नार्वे का राजनीतिज्ञ जिसका पूरा नाम विदकुन अब्राहम लारिटस क्विज़ालिंग था। उसका जन्म 18 जुलाई, 1887 अक्तूबर, 1945 को हुआ था। हिटलर ने मई, 1940 में नार्वे पर आक्रमण तथा अधिकार करने के पश्चात् उसे वहाँ का प्रधान मंत्री नियुक्त किया। क्विज़लिंग ने जर्मन आधिपत्यकारी सत्ताओं के साथ स्वैच्छिक सहयोग से कार्य किया जिसके फलस्वरूप उसका नाम देशद्रोह का प्रतीक बन गया। उसके देशवासियों ने उसके आचरण की निन्दा की। द्वितीय महायुद्ध की समाप्ति के पश्चात् उस पर मुकदमा चला तथा उसे प्राण-दंड दिया गया। अब यह शब्द `देशद्रोही` का पर्याय बन गया है।

Quo warranto
अधिकार पृच्छा यह उच्च न्यायालयों द्वारा जारी किए जाने वाले समादेशों में से एक है। अधिकार पृच्छा का समादेश न्यायालय उस स्थिति में जारी करता है जब कोई अवैध व्यक्ति किसी सार्वजनिक पद पर आसीन हो। न्यायालय मामले की जाँच करने के पश्चात यदि यह पाता है कि वास्तव में पदासीन व्यक्ति अवैध रूप से पदासीन है तो उसे पद से हटा दिए जाने का समादेश जारी कर सकता है। यही `अधिकार पृच्छा` समादेश होता है।


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