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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-X)

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सेंत
बहुत अधिक, ढेर का ढेर।
वि.

सेंतना, सेंतनो
इकट्ठा या संचित करना।
क्रि.स.
(हिं. सैंतना)

सेंतना, सेंतनो
समेटना।
क्रि.स.
(हिं. सैंतना)

सेंतना, सेंतनो
सहेजना।
क्रि.स.
(हिं. सैंतना)

सेंतमेंत
बिना दाम दिये, मुफ्त में।
क्रि. वि.
[हिं. सेंत + मेंत (अनु.)]
उ.- कलुषी अरू मन मलिन बहुत मैं सेंतमेंत न बिकाऊँ-१-१२८।
मुहा. सेंतमेंत का - मुफत का। सेंतमेंत में- (१) मुफ्त में। (२) व्यर्थ।

सेंतमेंत
बेमतलब, वृथा, निष्प्रयोजन।
क्रि. वि.
[हिं. सेंत + मेंत (अनु.)]

सेंति, सेंती
कुछ खर्च या व्यय का न होना।
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. सेंत)
मुहा. सेंति के- बहुत से। उ.- सखा संग लीन्हें जु सेंति के फिरत रैनि दिन बन में धाए-१०९३। सेंति या में - बिना मूल्य के, मुफ्त में। उ.- प्रानन के बदले न पाइयत सेंति बिकाय सुजस की ढेरी-२८५२।

सेंति, सेंती
पुरानी हिन्दी की करण और अपदान की विभक्ति, से।
प्रत्य.
[प्रा. सुंतो (पंचमी विभक्ति)]
उ.- (क) ता रानी सेंती सुत ह्यैहै-६-५। (ख) तप कीन्हैं सो दैहैं आग। ता सेंती तुम कीनौ जाग-९-२। (ग) बहुरि सक्र सेंती कहथौ जाइ-९-१७४।

सेंथी
भाला, बरछी।
संज्ञा
स्त्री.
(सं. शक्ति)
उ.- इंद-जीत लीनी जब सेंथी (पाठा. - सक्ती) देवनि हहा करथौ। छूटी बिज्जु-रासि वह मानौ, भूतल बंधु परथौ-९-१४४।

सेंद
चोरी करने के लिए दीवर में किया गया छेद जिसमें से होकर चोर घर में जा सके और सामान बाहर निकाल सके।
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. सेंध)


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