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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-X)

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सेंक
गरमी, ताप।
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. सेंकना)

सेंक
शरीर के किसी अंग पर गरम चीज से पहुँचाई जानेवाली गर्मी, टकोर।
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. सेंकना)

सेंकना, सेंकनो
आँच के पास या आग पर रखकर गर्मी पहुँचाना या भूनना।
क्रि.स.
(सं. श्रेषण=जलाना, तपाना)

सेंकना, सेंकनो
धूप में या गरमी पहुँचानेवाली चीज के सामने रहकर उसकी गर्मी से लाभ उठाना या उठाने को प्रवृत्त करना।
क्रि.स.
(सं. श्रेषण=जलाना, तपाना)
मुहा.- आँखें सेंकना-किसी (नारी) का सुन्दर रूप देखकर आँखें तृप्त करना।

सेंगर
एक पौधा जिसकी फलियों की तरकारी बनती है।
संज्ञा
पुं.
(सं. श्रृंगार)

सेंगर
इस पौधे की फली।
संज्ञा
पुं.
(सं. श्रृंगार)

सेंगर
क्षत्रियों की एक जाति।
संज्ञा
पुं.
(सं. श्रृंगीवर)

सेंट
स्तन से निकलने वाली दूध की धार।
संज्ञा
स्त्री.
(देश.)

संठा
मूँज या सरकंडे के सींके का निचला मोटा हिस्सा।
संज्ञा
पुं.
(देश.)

सेंत
अपने पास से कुछ खर्च या व्यय न होना।
संज्ञा
स्त्री.
(सं. संहति=किफायत)
मुहा.- सेंत का-(१) जिसके लिए खर्च न करना पड़ा हो, मुफ्त में मिला हुआ। (२) बहुत सा, ढेर का ढेर। उ.-दधि में पड़ी सेंत की मोपै चीटी सबै कढ़ाईं-१०-३२२। सेंत में- (१) बिना कुछ दाम दिये या खर्च किये। (२) व्यर्थ, निष्प्रयोजन।


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