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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-VII)

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बहियाँ
बाँह, हाथ, भुजा।
संज्ञा
[हिं. बाँह]
( क ) सूरदास हरि बोलि भक्त कौं, निरबाहत गहि बहियाँ-९-१९। (ख) बहियाँ पकरि सूर के प्रभु की नंद की सौंह दिवाइ-३१६६।

बहिरंग
बाहरी।
वि.
[सं.]

बहिरंग
अंतरंग' का विपरीतार्थक।
वि.
[सं.]

बहिरंग
वर्ग या दल से बाहर।
वि.
[सं.]

बहिर
बहरा।
वि.
[हिं. बहरा]

बहिरत
बाहर।
अव्य.
[सं. वहि.]

बहिराना
बाहर निकालना।
क्रि. स.
[हिं. बाहर+ना]

बहिराना
बाहर हो जाना।
क्रि. अ.
[हिं. बाहर+ना]

बहिरी
बहरी (स्त्री)।
वि.
[हिं. बहरा]
बहिरी पति सों बात करै सो तैसोइ उत्तर पावै-३०२६।

बहिरो, बहिरौ
जो कान से सुन न सके।
वि.
[सं. बधिर, प्रा. बहिर, हिं. बहरा]
बहिरौ सुनै, मूक पुनि बोले-१-१। (ख) बहिरो तान स्वाद कहा जानै गूँगो खात मिठास ३३३६।


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