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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-VII)

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बही
हिसाब-किताब लिखने की पुस्तक।
संज्ञा
[सं. बद्ध]
(क) सूर पतित जौ झूठ कहत है, देखौ खोजि बही-१-१३७। (ख) अहंकार पटवारी कपटी झूठी लिखत बही-१-१८५।
बही में चढ़ना (टँकना) - हिसाब में लिख लिया जाना। बही में चढ़ाना (टाँकना) - हिसाब में लिखना।

बही
प्रवाहित हुई।
क्रि. अ.
[हिं. बना]
(क) मनु बरषत भादौं मास नदी घृत-दूध बही-१०- २४।

बही
मारी मारी फिरी, भटकती घूमी।
क्रि. अ.
[हिं. बना]
(क) घर तजिकै कोऊ रहत पराये मैं तबहीं ते फिरति बही री-१८६। (ख) सूरदास इन लोभिनि के संग बन-बन फिरति बही - पृ.३३२ (१५)।

बहीखाता
हिसाब-किताब लिखने की पुस्तक।
संज्ञा
[हिं. बही + खाता]

बहीर
जन-समूह, भीड़।
संज्ञा
[हिं. भीड़]

बहीर
सेना के साथ सेवक - समूह।
संज्ञा
[हिं. भीड़]

बहीर
सेना की सामग्री।
संज्ञा
[हिं. भीड़]

बहीर
बाहर।
अव्य.
[हिं. बाहर]

बहु
बहुत (संख्यावाचक), एक से अधिक, अनेक।
वि.
[सं.]

बहु
ज्यादा, अधिक।
जनम-मरन-काटन कौं कर्तरि तीछन बहु विख्यात-१- ९०।


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