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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-VII)

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मुरड़
गर्व, अभिमान।
संज्ञा
[हिं.]

मुरड़की
ऐंठन, मरोड़।
संज्ञा
[हिं. मरोड़]

मुरत
मुड़ता या हिलता डोलता है।
क्रि. अ
[हिं. मुड़ना]
इत-उत अंग मुरत झकझोरत-१०-३००।

मुरत
मुड़ता, हटता, फिरता या लौटता है।
क्रि. अ
[हिं. मुड़ना]
(क) एक ते एक रणबीर जोधा प्रबल मुरत नहिं नेंक अति सबल जी के। (ख) रुकत न पौन मह,वत पै मुरत न अंकुश मोरे-2८१८।

मुरदर
श्रीकृष्ण।
संज्ञा
[सं.]


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