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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-VII)

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देवनागरी वर्णमाला का पचीसवाँ व्यंजन जो होंठ और नासिका से उच्चरित होता है।

मंकुर
शीशा, दर्पण।
संज्ञा
[सं. मुकुर]

मंग
सिर के बालों के बीच की माँग।
संज्ञा
[हिं. माँग]
(क) गोरे भाल लाल सेंदुर छबि मुक्ताबर सिर सुभग मंग को-१०४२। (ख) इन बिरहिनि मैं कहूँ तू देखी सुमन गुहाए मंग-३२२३।

मँगइए
मँगाइए।
क्रि. स
[हिं. मँगाना]
सकुचत फिरत जो बदन छिपाए, भोजन कहा मँगइए.-१-२३९।

मंगता, मँगता
भिखमंगा।
संज्ञा
[हिं. माँगन+ ता]

मंगन
भिखमंगा।
संज्ञा
[हिं. माँगना]
धेनु जे संकल्प राखीं लईं ते गनाइ कै....... मागध मंगन जन लेत मन भाइ कै--२६२८।

मंगना
याचना करना।
क्रि. स.
[हिं. माँगना]

मँगनी
माँगने की क्रिया या भाव।
संज्ञा
[हिं. माँगना]

मँगनी
कुछ समय के लिए माँग कर लेले का भाव।
संज्ञा
[हिं. माँगना]

मँगनी
कुछ समय के लिए माँग कर ली गयी वस्तु।
संज्ञा
[हिं. माँगना]


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