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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-VII)

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विच्छित्ति
श्रृंगार का एक हाव जिसमें किंचित श्रृंगार से ही पुरुष का मुग्ध होना वर्णित हो।
संज्ञा
[सं.]

विडंबना
नकल।
संज्ञा
[सं. बिडंबन]

विडंबना
उपहास
संज्ञा
[सं. बिडंबन]

विधंसि
नष्ट करके, नाश करके, विध्वंस करके।
क्रि. स.
[हिं. बिधँसना]
धर बिधंसि नल करत किरषि हल, बारि, बीज बिथरै। सहि सन्मुख तउ सीत-उष्न कौं, सोई सुफल करै-१-११७

विभूषित
अलंकृत।
वि.
[सं. विभूषित]
सुरभि रेनु-तन, भस्म विभूषित, बृष-बाहन, बन-बृथचारी-१०-१७२।

विषम
भयंकर।
वि.
[सं विषम]
जहाँ न काहू कौ गम, दुसह दारुन तम, सकल बिधि बिषम, खल-मल खानि-१-७७।

विषम
तेज, तीव्र।
वि.
[सं विषम]

विषम
भयंकर।
वि.
[सं विषम]
माया बिषम भुजंगिनि कौ बिष उतर्यो नाहिंन तोहि-2-३२।

विषम
बहुत कठिन।

विषम
जो 'सम' न हो।


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