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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-VI)

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निमिषौ
पल भर को भी।
उ.- स्वाद पर्यौ निमिषौ नाहिं त्यागत ताही माँझ समाने - पृ. ३२८ (७२)।
संज्ञा
[सं. निमिष]

निमीलन
पलक मारना, निमेष।
संज्ञा
[सं.]

निमीलिका
आँख की झपक।
संज्ञा
[सं.]

निमीलित
ढका हुआ।
वि.
[सं.]

निमीलित
मृत।
वि.
[सं.]

निमुहाँ
कम बोलनेवाला।
वि.
[हिं. नि + मुँह]

निमेक, निमेख, निमेष
पलक का गिरना, आँख का झपकना।
उ.- (क) सूर प्रभु की निरखि सोभा तजे नैन निमेष - ६३५। (ख) सूर निरखि नारायन इकटक भूले नैन निमेक - पृ. ३४७ (५१)। (ग) मनहुँ तुम्हारे दरसन कारन भूले नैन निमेष - २५६१।
संज्ञा
[सं. निमेष]

निमेक, निमेख, निमेष
पलक झपकने भर का समय।
संज्ञा
[सं. निमेष]

निमेषक
पलक।
संज्ञा
[सं.]

निमेषक
जुगनूँ।
संज्ञा
[सं.]


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