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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-IX)

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शाल
ऊनी या रेशमी चादर, दुशाला।
संज्ञा
(फ़ा.)

शालक
सालने या पीड़ा पहुँचाने वाला।
वि.
(हिं. सालना)
उ.-जो रिपु तुम पहिले हति हाँडे बहुरि भए मम शालक-३१६५।

शालक
नाश करनेवाला।
वि.
(हिं. सालना)
उ.-¨¨¨¨¨¨ अनंत शक्ति प्रभु असुर शालक- १० उ.- ३५।

शालक
मसखरा, हँसोड़।
वि.
(सं.)

शालग्राम
गंडकी नदी से प्राप्त पत्थर की बटिया जिस पर चक्र का चिह्न बना रहता है; यह विष्णु की मूर्ति मानी जाती है।
संज्ञा
(सं.)

शालत
पीड़ा पहुँचाती है।
क्रि.स.
(हिं. सालना)
उ.-सूर नंद के हृदय सालत सदा-२४६६।

शालति
पीड़ा पहुँचाती है।
क्रि.स.
(हिं. सालना)
उ.-अब वै शलति हैं उर महियाँ-२५४२।

शालभ
पतिंगों के संबंध का।
वि.
(सं.)

शालव
सौभ रज्य का राजा जो शिशुपाल का मित्र था और जो उसकी मृत्यु कै पश्चात् द्वारका का घेरा डालने पर श्रीकृष्ण द्वारा मारा गया था।
संज्ञा
(सं. शाल्व)
उ.- (क) शालव दंतबक्र बनारसी को नृपति चढ़े दल साजि मानो रविहिं छाए-१० उ.- २१। (ख) कीन्हों युद्ध आप शालव सों उन बहु माया कीनी-सारा. ७९२।

शाला
घर, गृह।
संज्ञा
(सं.)


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