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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-IX)

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देवनागरी वर्णमाला का बत्तीसवाँ व्यंजन जिसका उच्चारण-स्थान दंत है।

सं
एक अव्यय जो शब्द के आदि में जुड़कर शोभा, समानता, निरंतरता, औचित्य आदि सूचित करता है।
अव्य
(सं. सम्)

सं
से।
अव्य
(सं. सम)

सँइतना
जोड़ना, इकट्ठा करना।
क्रि.स.
(सं. संचय)

सँइतना
सहेजना, सँभालना।
क्रि.स.
(सं. संचय)

सँउपना
देना, अर्पित करना।
क्रि.स.
(हिं. सौंपना)

संक
डर, भय।
संज्ञा
(सं. शंक)
उ.- (क) अजहुँ नाहिं संक धरत बानर मति-भंगा-९-९७। (ख) होइ सनमुख भिरौं, संक नहिं मन धरौं-९-१२९।

संक
संकोच।
संज्ञा
(सं. शंक)
उ.- इक अभरत लेहिं उतारि, देत न संक करै-१०-२४।

संक
संदेह।
संज्ञा
(सं. शंक)

संक
अनिष्टाशंका।
संज्ञा
(सं. शंक)


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