पुरकील घुर को मौरे के भीतर एक स्थान पर छड़ रखने के लिये जो कील लगाई जाती है वह घुरकीला या घुरकील कहलाती है।
घुरा
गाड़ी के ढांचे में पटनौर के नीचे लगी हुई तीन लकड़ियाँ गाड़ी की चौड़ाई के हिसाब से फैली हुई रहती है और आगे आपस में हरैना के द्वारा जुड़ी रहती है, आसपास की दो लकड़ियाँ घुरा कहलाती हैं और बीच का सींका ये घुरे ढोकर की लकड़ी के तीन छेदों में पड़े रहते हैं। ढोकर के बाद एक पटली बीच में और दूसरी घुरे के पिछले सिरों पर लगी रहती है, बीच में कम चौड़ी पटलियां पड़ी रहती हैं इन सबको मिलाकर गाड़ी का ढांचा बनता है।
घुरे
मौरा के दोनों सिरों पर लगे हुए लगभग डेढ़ हाथ लंबे लोहे के मोटे डंडे जिनमें पहिया पिरोये जाते हैं, ये घुरे के छेदों में लगभग एक बालिशत भीतर धंसे रहते हैं और मजबूती के लिये उनमें घुरे कीले लगे रहते हैं।