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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-VII)

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बहुरंग, बहुरंगा
अनेक रूप धारण करनेवाला, बहुरूपिया।
वि.
[हिं. बहु +रंग]

बहुरंग, बहुरंगा
मननौजी।
वि.
[हिं. बहु +रंग]

बहुरंगी
अनेक रूप धारण करने में समर्थ।
वि.
[हि. पुं. बहुरंगा + ई [प्रत्य.]
नाथ अनाथनि ही के संगी। दीन दयाल परम करुनामय, जन-हित हरि बहुरंगी-१-२१।

बहुरंगी
बहुरूपिया।
[हि. पुं. बहुरंगा + ई [प्रत्य.]

बहुरंगी
अनेक रंगों का।
[हि. पुं. बहुरंगा + ई [प्रत्य.]

बहुर
पुनः, फिर।
क्रि. वि.
[हिं. बहुरना (बहुरि =फिरकर)]
अब कैं तौ आपुन लै आयौ, बेर बहुर की और-१-१४६।

बहुरना
जाकर फिर वापस आना।
क्रि. अ.
[सं. व्याघुट, प्रा. बाहुड़ +ना]

बहुरना
खोकर फिर मिलना।
क्रि. अ.
[सं. व्याघुट, प्रा. बाहुड़ +ना]

बहुराई
लौटा देना, वापस कर देना।
क्रि. स.
[हिं. बहुरना]
उरहन देत ग्वालि जे आई। तिंन्हैं दियौ जसुदा बहुराई-३९१।

बहुरावहु
लौटाओ, वापस बुलाओ।
क्रि. स.
[हिं. बहुराना]
भई अबार गाइ बहुरावहु, उलटावहु, दै हाँक-४६४।


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