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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-I)

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औरौ
वि.
[हिं. और]
अन्य, दूसरा।
औरौ दँडदाता दोउ आहि। हम सौं क्यौं न बतावो ताहि-६.४।

औलना
क्रि. अ.
[हिं. जलना]
गरमी पड़ना, तप्त होना।

औषध
संज्ञा
[सं.]
रोग दूर करने की वस्तु, दवा।
बिन जानैं कोउ औषध खाइ। ताकौ रोग सफल नसि जाइ---६-४।

औषधि, औषधी
संज्ञा
[सं. औषध]
दवा, औषधि।
तुम दरसन इक बार मनोहर, यह औषधि इक सखी लखाई-७४८।

औसर
संज्ञा
[सं. अवसर]
समय, काल।
(क) हरि सौं मीत न देख्यौ कोई। विपति काल सुमिरत तिहिं औसर आनि तिरीछौ होई--१-१०। (ख) गए न प्रान सूरता औसर नंद जतन करि रहे घनेरो-२५३२।

औसर
मुहा.
औसर हारयौ :- मौका चूक गये। उ.-औसर हारयौ रे तैं हारयौ। मानुष-जनम पाइ नर बौरे, हरि को भजन बिसरायाै--१-३३६।

औसान
संज्ञा
[सं. अवसान]
अंत।

औसान
संज्ञा
[सं. अवसान]
परिणाम।
जेहि तन गोकुलनाथ भज्यौ। ऊधो हरि बिछुरत ते बिरहिनि सो तनु त बहिं नज्यो। अब औसान घटत कहि कैसे उपजी मन परतीति।

औसान
संज्ञा
सुध-बुध, धैर्य।
सुरसरि-सुवन रन भूमि आए। बान वर्षा लागे करन अति क्रोध ह्वै पार्थं औसान (अवसान) तब सब भुलाए---१-२७३।

औसाना
क्रि. स.
[हिं. औसाना]
फल पाल में रखकर पकाना


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