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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-I)

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अंशु
संज्ञा
[सं.]
किरण, प्रभा।

अंशु
संज्ञा
[सं.]
लेश, बहुत सूक्ष्म भाग।
दुख आवन कछ अटक न मानतः सूनो देखि अगार। अंशु उसाँस जात अंतर ते करत न कछू विचार--२८८८।

अंशुक
संज्ञा
[स.]
उपरना, उत्तरीय, दुपट्टा।

अंशुमान
संज्ञा
[सं.]
अयोध्या के सूर्यवंशी राजा जो सगर के पौत्र और असमंजस के पुत्र थे। सगर के साठ हजार पुत्रों के भस्म हो जाने पर अश्वमेध का घोड़ा खोजने ये ही निकले थे और इन्हें ही सफलता मिली थी।

अंशुमाली
संज्ञा
[सं.]
सूर्य।

अंस, अँस
संज्ञा
[सं. अंश]
भाग, शक्ति।
(क) विष्नु-अंस सौं दत्तऽउतरे। रुद्र-अंस दुर्बासा धरे। ब्रह्म-अंस चंद्रमा भयौ---४-३। (ख) राजा मंत्री सौं हित मानै। ताकैं दुख दुख, सुख-सुख जानै। नरपति ब्रह्म, अरु सुख-रूप। मन मिलि परयौ दुख कै कूप-.--.४.१२।

अंस, अँस
संज्ञा
[सं. अंश]
कला, सोलहवाँ भाग।
हरि उर मोहनि बेलि लसी। ता पर उरग ग्रसित तब सोभित पूरन अंस ससी-स. उ.-२५।

अंस, अँस
संज्ञा
[सं. अंश]
आत्मीयता, अपनत्व, अधिकार, संबंध।
इनके कुल ऐसी चलि आई सदा उजागर बंस। अब इन कृपा करी ब्रज आए जानि आपनो अंस३०४९।

अंस, अँस
संज्ञा
[सं. अंश]
कंधा।
बाम भुजहिं सखा अँस | दीन्हें, दच्छिन कर द्रुम-डरिया-४७०।

अंसक
वि.
[सं. अंशक]
अंश रखनेवाला, अंशी, अंशधारी।


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