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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-I)

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अंध
संज्ञा
धृतराष्ट्र।

अंध
यौ.
अंधसुत - ध़तराष्ट्र के पुत्र।
अंबर गहत द्रौपदी राखी, पलटि अंधसुत लाजैं - १-३६।

अंधकार
संज्ञा
[सं.]
अँधेरा, तम।

अंधकार
संज्ञा
[सं.]
अज्ञान, मोह।

अंधकार
संज्ञा
[सं.]
उदासी, कांतिहीनता।

अंधकाल
संज्ञा
[सं. अंधकार]
अँधेरा।

अंधकाला
संज्ञा
[सं. अंधकार]
अँधेरा, अंधकार।
ऐसे बादर सजल करत अति महाबल चलत घहरात करि अंधकाला---९४६।

अंधकूप
संज्ञा
[सं.]
सूखा कुआँ।

अंधकूप
संज्ञा
[सं.]
अँधेरा।

अंधधुंध
संज्ञा
[सं. अंध = अंधकार + हिं. धुंध]
अंधकार, औधेरा।
अति विपरीत तृनावर्त आयौ। बात चक्र मिस ब्रज के ऊपर नंद पौरि के भीतर आयौ। अंधधुंध (अँधाधुंध) भयौ सब गोकुल जो जहां रह्यो सो तहाँ छपायौ--१०-७७। (ख) कोउ ले ओट रहत बृच्छन की अंधधंध दिसि बिदिस भुलाने-९५१। (ग) अँधधुंध मग कहूँ न सूझे--१०५०।


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