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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-I)

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देवनगरी वर्णमाला का ग्यारहवा स्वर जो अ और ओ के संयोग से बना है। इसका उच्चारण कंठ और ओष्ठ, से होता है।

औंगा
वि.
[हिं. औंगी]
जो बोल न सके, गूँगा।

औंगी
संज्ञा
[सँ. आवङ]
चुप्पी, गुँगापन।

औंघना
क्रि. अ.
[सं. अवाङ]
अलसाना, झपकी लेना।

औंधाई  
संज्ञा
[हिं. औंघना]
झपकी, उँघाई, आलस्य।

औंघान
क्रि. अ.
[हिं. औंधाना]
ऊँघना, झपकी लेना।

औंछि
क्रि. स.
[हिं. पौंछनी ओंछना]
पोंछकर, झाड़पोंछकर, हाथ फेरकर।
दोऊ भैया कछु करौं कलेऊ लई बलाई कर औंछि-६०९।

औंजाना
क्रि. अ.
[सं. आवेजन = व्याकुल होना]
ऊबना, अकुलाना, घबराना।

औंठ
संज्ञा
[सं. ओष्ठ, प्रा. ओटट]
उठा हुआ किनारा, बारी।

औंड़
संज्ञा
[स. कुंड = गडढा]
गड्ढा खोदनेवाला, बेलदार।


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