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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-I)

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ओड़ैं  
क्रि. स.
[हिं. ओढ़ना]
रोकता है, सहता है।
नृप भूषन कपि पितु गज पहिलो आस बचन की छोड़ै। तिथि नछत्र के हेतु सदाई महाबिपति तन ओड़ैं-सा० ४३।

ओढ़  
क्रि. स.
[हिं.ओढ़ना]
अपने ऊपर ले, भागी बने, सहन करे।
कै अपराध ओढ़ (ओड़ि) अब मेरौ, कै तू देहि दिखाइ-९-८३।

ओढ़त  
क्रि. स.
[हिं.ओढ़ना]
ओढ़ता है। (वस्त्र से शरीर) ढकता हैं।
पीतांबर यह सिर तैं ओढ़त, अंचल दै मुसुकात--१०-३३८।

ओढ़न  
संज्ञा
[हिं. ओढ़ना]
ओढ़ने की क्रिया।
डासन काँस कामरी ओढ़न बैठन गोप सभा की--२२७५।

ओढ़ना  
क्रि. स.
[सं. उपवेष्ठन, प्रा. ओवेड्ढन]
किसी वस्त्र से ढकना।

ओढ़ना  
क्रि. स.
[सं. उपवेष्ठन, प्रा. ओवेड्ढन]
अपने सिर लेना, भागी बनना।

ओढ़ना  
संज्ञा
ओढ़ने का कपड़ा।

ओढ़नि, ओढ़नी
संज्ञा
[हिं. ओढ़ना]
स्त्रियों के ओढ़ने का वस्त्र, उपरैनी, चादर, फरिया।
(क) पीतांबर काकैं घर बिसरयौ, लाल ढिगनि की सारी आनी। ओढ़नि आनि दिखाई मोकौं, तरुनिनि की सिखई बुधि ठानी-६९५। (ख) सूरदास जसुमति सुत सौं क है, पीत ओढ़नी कहाँ गँवाई-६९२।

ओढ़र  
संज्ञा
[हिं. ओढ़ना]
बहाना, मिस।

ओढ़ावा  
क्रि. स.
[हिं. ओढ़ना, ओढ़ाना]
ढकना, आच्छादित करना।


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