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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-I)

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ओटना
क्रि. स.
[सं. आवर्तन, पा. आवटठन ]
स्वयं (आपत्ति, बात आदि) सहन करना।

ओड़न
संज्ञा
[हिं. ओड़ना]
बार रोकने की बस्तु।

ओड़न
संज्ञा
[हिं. ओड़ना]
ढाल।

ओड़ना
क्रि. स.
[हिं. ओट]
रोकना, आड़ करना।

ओड़ना
क्रि. स.
[हिं. ओट]
सहन करना, झेलना।

ओड़ना
क्रि. स.
[हिं. ओट]
फैलाना, पसारना।

ओड़ना
क्रि. स.
[हिं. ओट]
धारण करना, पहनना।

ओड़हु
क्रि. स.
[हिं. ओड़ना]
फैलाओ, पसारो।
लेहु मातु सहिदानि मुद्रिका, दई प्रीति करि नाथ। सावधान ह्वै सोक निवारहु, ओड़हु इच्छिन हाथ---९.८३

ओड़ि
क्रि. स.
[हिं. ओड़ना]
[अपने] ऊपर ले, स्वीकार कर, भागी बन जा, सहन कर।
बोल्यौ नहीं रह्यौ दुरि बानर, द्रम मैं देहि छपाइ। कै अपराध औड़ि तू मेराै, कै तूं देहि दिखाइ----९-८३।

ओड़िये
क्रि. स.
[हिं. ओड़ना]
आड़ करो, रोको, सहो।
ओड़िये नँदनंद जू के चलत ही दृगवान। राखिये दृग मद्ध दीजै अनत नाही जान----सा० १०७।


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