सोभा-सिंधु अंगअंगनि प्रति, बरनत नाहिंन ओर री-१०-१३९
ओर
मुहा.
ओर (निबाह्यौ) निबाहे :- अंत तक कर्तव्य का पालन किया। उ.- (क) और पतित आवत न आँखि-तर देखत अपनौ साज। तीनौं पल भरि ओर निबाह्यौ तऊ न आयौ बाज-१-९६। (ख) तीन्यौ पन मैं ओर निबाहे, इहै स्वाँग कौं काछै। सूरदास कौं य है बड़ो दुख परत सबनि के पाछे-१-१३६।
ओर आयौ :- अंत निकट आ गया।
ओर
संज्ञा
[सं. अवार= किनारा]
आदि, आरम्भ।
हरि जू की आरती . बनी।.........। नारदादि सनकादि प्रजापति, सुरनर-असुर अनी। काल-कर्म-गुन-ओर-अंत नहिं. प्रभु इच्छा रचनी--२-२८।
ओर
संज्ञा
[सं. अवार= किनारा]
दिशा, तरफ।
ओर
संज्ञा
[सं. अवार= किनारा]
पक्ष।
यादव बीर बराइ बटाई इक हलधर इ४ आपै ओर---१० उ०-६।
ओरती
संज्ञा
[हिं. ओलती]
ढलुआ छप्पर के किनारे का वह भाग जहाँ से वर्षा का पानी नीचे गिरता है।