logo
भारतवाणी
bharatavani  
logo
Knowledge through Indian Languages
Bharatavani

Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-I)

Please click here to read PDF file Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-I)

ऐन
संज्ञा
[सं. अयन]
गति, चाल।

ऐन
संज्ञा
[सं. अयन]
मार्ग, राह।
परम अनाथ, बिबेक नैन बिनु, निगम ऐन क्योँ पावै ? पग-पग परत कर्म-तप, कूपहिं. को करि कृपा बचावै-१-४८।

ऐन
संज्ञा
[सं. अयन]
स्थान।
सोभा सिंधु समाइ कहाँ लौं हृदय साँकरे ऐन-२७६५

ऐन
संज्ञा
[सं. अयन]
अश।
गंग-तरंग बिलोकत नैन।…….। त्रिभुवन हार सिंगार भगबती, सलिल चराचर जाके ऐन-९-१२।

ऐन
संज्ञा
[सं. अयन]
निंधि, राशि, भंडार।
(क) निरखत अंग अधिक रुचि उपजी नख-सिख सुन्दरता को ऐन-७४२। (ख) हौं जल गई जमुना लेन। मदन रिस के आदि ते मिल मिली गुनगन ऐन---सा० ६६।

ऐन
संज्ञा
[सं. अयन]
समय, काल।
उर काँप्यौ नन पुलकि पसीज्यौ, बिसरि गए मुख-बैन। ठढ़ी ही जैसैं तैसें झुकि, परी धरनि तिहिं ऐन-७४९।

ऐनु  
संज्ञा
[सं. अयन, हिं. ऐन]
मार्ग, राह।
त्रिबिधि पवन जहँ बहत निसादिन सुभग-कुंजघर.ऐनु। सूर स्याम निज धाम बिसारत, आवत यह सुख लैनु-४४८।

ऐनु  
संज्ञा
[सं. अयन, हिं. ऐन]
आश्रम, भवन।
इहाँ रहहु जहँ जूठनि पालहु, ब्रजवासिनि कैं ऐनु। सूरदास ह्याँ की सरवरि नहिं. कल्पवृच्छ सुर-धैनु-४९१।

ऐनु  
संज्ञा
[सं. अयन, हिं. ऐन]
अंश।
आतपत्र मयूर चंदिका लसति है रवि ऐनु---२७५५।

ऐनु  
संज्ञा
[सं. अयन, हिं. ऐन]
भाग, प्राप्य वस्तु।
रह न सकति मुरली मधु पीवत चाहत अपनो ऐनु---२३५५।


logo