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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-I)

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ऐंठी
वि.
जिसने मान किया हो, जो अप्रसन्न हो।

ऐंठे
वि.
[हिं. ऐंठना]
अभिमानी, गर्व भरे।
बाएँ कर बाजि-बाग दाहिन हैं बैठे। हाँकत हरि हाँक देत गरजत ज्यौं ऐंठे-१-२३।

ऐंठयो
क्रि. अ.
[हिं.ऐंठना]
घमण्ड किया, अकड़दिखायी।
कुबलिया मल्ल मुष्ठिक चानूर सो होउ तुम सजग कहि सबन ऐंठयो-२६६३।

ऐंड़त
संज्ञा
[हिं. ऐंठ]
ठसक, गर्व, शान।

ऐड़त
क्रि. स.
[हिं. ऐड़ना]
अँगड़ाई लेते हैं।
ऐंड़त अंग जम्हात बदन भरि कहत सबै यह बानी--१८५४।

ऐंड़ना  
क्रि. अ.
[हिं. ऐंड़ना]
बल खाना।

ऐंड़ना  
क्रि. अ.
[हिं. ऐंड़ना]
अँगड़ाई लेना।

ऐंड़ना  
क्रि. अ.
[हिं. ऐंड़ना]
घमंड दिखाना।

ऐंड़ात
क्रि. अ.
[हिं. ऐंड़ना]
अँगड़ाई लेते हैं,बदन तोड़ते हैं।
आलस हैं भरे नैन बैन अटपटात जात ऐंड़ात जम्हात जात अंग मोरि बहियां झेलि-१५८२।

ऐंड़ात
क्रि. अ.
[हिं. ऐंड़ना]
इठलाते हैं।


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