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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-VI)

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निरखना
देखना, ताकना।
क्रि. स.
[सं. निरीक्षण]

निरखनि
देखने की क्रिया या भाव।
उ.- सुंदर बदन तडाग रूपजल निरखनि पुट भरि पीवत- पृ. ३३५ (४६)।
संज्ञा
[हिं. निरखना]

निरखि
देखकर, देखदेख।
उ.- (क) इतनी सुनत कुंति उठि धाई, बरषत लोचन नीर।¨¨¨। त्यागति प्रान निरखि सायक धनु, गति-मति-बिकल-सरीर - १-२९। (ख) सुंदर बदन री सुख सदन स्याम के निरखि नैन-मन थाक्यो - २५४६।
क्रि. स.
[हिं. निरखना]

निरखो, निरखौ
देखो, निहारो।
उ.- बिछुरन भेंट देहु ठाढ़े ह्वै निरखो घोष जन्म को खेरो - २५३२।
क्रि. स.
[हिं. निरखना]

निरखो, निरखौ
सोचो, समझो, विचारो।
उ.- यह भावी कछु और काज है, को जो याकौ मेटनहारौ। याकौ कहा परेखौ-निरखौ, मधु-छीलर, सरितापति खारौ - ९-३६।
क्रि. स.
[हिं. निरखना]

निरग
राजा नृग।
संज्ञा
[सं. नृग]

निरगुन
सत्व, रज और तम-निश्चय रूप से जो इन तीनों गुणों से परे हो।
उ.- बेद-उपनिषद जासु कौं निरगुनहिं बतावै। सोइ सगुन ह्वै नंद की दाँवरी बँधावै - १-४।
वि.
[सं. निर्गुण]

निरगुनिया, निरगुनी
जिसमें गुण न हो, जो गुणी न हो, अनाड़ी।
वि.
[सं. निर्गुण]

निरघात
नाश।
संज्ञा
(सं. निर्घात)

निरघात
आघात।
संज्ञा
(सं. निर्घात)


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