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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-VI)

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पंखि, पंखी
पंखुड़ी।
संज्ञा
[सं. पक्षी, पा. पक्खी, हिं. पंखी]

पंखि, पंखी
छोटा पंखा।
संज्ञा
[हिं. पंखा]

पंखुड़ा
कंधे और बाँह का जोड़।
संज्ञा
[सं. पक्ष]

पँखुड़ी, पंखुड़ी
फूल का दल।
संज्ञा
[हिं. पंखा]

पंग
लँगड़ा।
उ.- (क) पंछी एक सुहृद जानत हौं, कर्यौ निसाचर भंग। तातैं बिरमि रहे रघुनंदन, करि मनसा-गति पंग-९-८३। (ख) छोभित सिंधु, सेष सिर कंपित पवन भयौ गति पंग-९-१५८। (ग) सूर हरि की निरखि सोभा भई मनसा पंग-६२७। (घ) भई गिरा-गति पंग-६४०।
वि.
[सं. पंगु]

पंग
स्तब्ध, बेकाम।
उ.- नखसिख रूप देखि हरि जू के होत नयन-गति पंग-३०७९।
वि.
[सं. पंगु]

पंगत, पंगति
श्रेणी, पाँती, पंक्ति, कतार।
उ.- (क) कनक मनि मेखला राजत, सुभग स्यामल अंग। मनौ हंस अकास-पंगति, नारि-बालक-संग-६३३। (ख) कोउ कहति अलि-बाल-पंगति जुरी एक सँजोग -६३६। (ग) मनौ इंद्रबधून पंगति सोभा लागति भारि-९ २१। (घ) चपला चमचमाति आयुध बग-पंगति ध्वजा अकार-२८२६।
संज्ञा
[सं. पंक्ति]

पंगत, पंगति
साथ भोजन करनेवालों की पंक्ति।
संज्ञा
[सं. पंक्ति]

पंगत, पंगति
भोज।
संज्ञा
[सं. पंक्ति]

पंगत, पंगति
सभा, समाज।
संज्ञा
[सं. पंक्ति]


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