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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-VI)

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पंडिताऊ
पंडितों के ढंग का।
वि.
[हिं. पंडित]

पंडितानी
पंडित की स्त्री।
संज्ञा
[हिं. पंडित]

पंडु
पीला।
वि.
[सं.]

पंडु
सफेद।
वि.
[सं.]

पंडुक
पिड़की, फाख्ता।
संज्ञा
[सं. पांडु]

पंडौ
पाँचों पांडव।
संज्ञा
[सं. पांडव]

पंथ
मार्ग, रास्ता, राह।
उ.-(क) मोंकौं पंथ बतायौ सोई नरक कि सरग लहौं-१-१५१। (ख) चलत पंथ कोउ था क्यो होई-३-१३।
संज्ञा
[सं. पथ]

पंथ
(२)आचार-व्यवहार की रीति।
उ.-नहिं रुचि पंथ पयादि डरनि छकि पंच एकादस ठानै-१-६०।
संज्ञा
[सं. पथ]

पंथ
पंथ गहना- (१) चलने के लिए राह पर होना। (२) विशेष, प्रकार का आचरण करना। पंथ गहौ- चलो, जाओ। उ. -बिछुरत प्रान पयान करेंगे, रहौ आजु पुनि पंथ गहौ-९-३३। पंथ दिखाना- (१) मार्ग बताना। (२) धर्माचरण की रीति बताना या तस्संबंधी उपदेश देना। पंथ देखना (निहारना)- बाँट जोहना, प्रतीक्षा करना। पंथ निहारौं- प्रतीक्षा करता हूँ, बाट जोहती हूँ। उ.-(क) तुमरो पंथ निहारौं स्वामी। कबहिं मिलौके अंतर्यामी। (ख) मैं बैठी तुम पंथ निहारौं। आवौ तुम पै मन वारौं। पंथ में (पर) पाँव देना- (१) चलना (2) विशेष आचरण करना। पंथ पर लगना- रास्ते पर होना, चाल चलना। किसी के पंथ लगना- (१) किसी का अनुयायी होना। (२) किसी को तंग करना। पंथ पर लाना (लगाना)- (१) ठीक मार्ग पर लाना। (२) अच्छी चाल सिखाना। (३) अनुयायी बनाना। पंथ सेना- बाट जोहना, आसरा देखना। एक पंथ द्वैकाज- एक कार्य करके अथवा एक रीति-नीति का निर्वाह करने से दोहरा लाभ होना। उ.- ज्ञान बुझाइ खबरि दै आवहु एक पंथ द्वैकाजु-- २९२५।
मु.

पंथ
धर्म-मार्ग, संप्रदाय।
संज्ञा
[सं. पथ]


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