उ.-(क) मोंकौं पंथ बतायौ सोई नरक कि सरग लहौं-१-१५१। (ख) चलत पंथ कोउ था क्यो होई-३-१३।
संज्ञा
[सं. पथ]
पंथ
(२)आचार-व्यवहार की रीति।
उ.-नहिं रुचि पंथ पयादि डरनि छकि पंच एकादस ठानै-१-६०।
संज्ञा
[सं. पथ]
पंथ
पंथ गहना- (१) चलने के लिए राह पर होना। (२) विशेष, प्रकार का आचरण करना।
पंथ गहौ- चलो, जाओ। उ. -बिछुरत प्रान पयान करेंगे, रहौ आजु पुनि पंथ गहौ-९-३३।
पंथ दिखाना- (१) मार्ग बताना। (२) धर्माचरण की रीति बताना या तस्संबंधी उपदेश देना।
पंथ देखना (निहारना)- बाँट जोहना, प्रतीक्षा करना।
पंथ निहारौं- प्रतीक्षा करता हूँ, बाट जोहती हूँ। उ.-(क) तुमरो पंथ निहारौं स्वामी। कबहिं मिलौके अंतर्यामी। (ख) मैं बैठी तुम पंथ निहारौं। आवौ तुम पै मन वारौं।
पंथ में (पर) पाँव देना- (१) चलना (2) विशेष आचरण करना।
पंथ पर लगना- रास्ते पर होना, चाल चलना।
किसी के पंथ लगना- (१) किसी का अनुयायी होना। (२) किसी को तंग करना।
पंथ पर लाना (लगाना)- (१) ठीक मार्ग पर लाना। (२) अच्छी चाल सिखाना। (३) अनुयायी बनाना।
पंथ सेना- बाट जोहना, आसरा देखना।
एक पंथ द्वैकाज- एक कार्य करके अथवा एक रीति-नीति का निर्वाह करने से दोहरा लाभ होना। उ.- ज्ञान बुझाइ खबरि दै आवहु एक पंथ द्वैकाजु-- २९२५।