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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-VI)

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पंछाला
छाले या फफोले का पानी।
संज्ञा
[हिं. पानी + छाला]

पंछी
पक्षी, चिड़िया, खग।
उ.-जा दिन मन-पंछी उड़ि जैहै। ता दिन तेरे तन-तरुवर के सबै पात झरि जैहैं-१-८६।
संज्ञा
[सं. पक्षी]

पंज
पाँच।
वि.
[हिं. पाँच]

पंछिनिपति
पक्षियों का राजा, गरुड़।
उ.-सोई हरि काँधे कामरि, काछ किए नाँगे पाइनि गाइनि टहल करैं। त्रिभुवनपति दिसिपति नर-नारी-पति पंछिनिपति, रबि ससि जाहि डरैं-४५३।
संज्ञा
[सं. पक्षीपति]

पंजर
शरीर की हड़्डियों का ढाँचा, ठठरी, कंकाल।
संज्ञा
[सं.]

पंजर
शरीर।
संज्ञा
[सं.]

पंजर
पिंजड़ा।
संज्ञा
[सं.]

पंजर
घेरा।
उ.-जब सुत भयो कहेउ ब्राह्मन ते अर्जुन गये गृह ताइ। सर-रोप्यो चहुँ दिसि ते जहाँ पवन नहिं जाइ-सारा. ८५१।
संज्ञा
[सं.]

पँजरना
जलना-बलना।
क्रि. अ.
[हिं. पजरना]

पँजरी
अर्थी, टिकठी।
संज्ञा
[सं. पंजर]


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