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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-VI)

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बसियाना
बासी हो जाना।
क्रि. अ.
[हिं. बसी]

बसिबे, बसिबो, बसिबौ
रहना, बास करना।
उ.- (क) नगर आहि नागर बिनु सूनो कौन काज बसिबे सौं-३३६५। (ख) वहाँ के बासी लोगन को क्यो ब्रज को बसिबो भावै री-१० उ.-८४। (ग) या ब्रज कौ बसिबौ हम छाँड़यौ-१०-३३७।
संज्ञा
[हिं. बसना]

बसिये
बसते या रहते हैं, वास है, रहना है।
उ.- बसिये एकहिं गाँउ कानि राखत हैं ताते-११२५।
क्रि. अ.
[हिं. बसना]

बसियै
बास कीजिए, रहिए।
उ.- सूर कहि कर तैं दूर बसियै सदा, जमुन कौ नाम लीजै जु छानैं-१-२२३।
क्रि. अ.
[हिं. बसना]

बसिष्ठ
वसिष्ठ मुनि जो राजा दशरथ के कुल-गुरू थे।
संज्ञा
[सं. वसिष्ठ]

बसिष्ठ
संदेशवाहक, दूत।
उ.- तुम सारिखे बसिष्ठ पठाए कहिए कहा बुद्धि उन केरी-३०१२।
संज्ञा
[हिं. बसीठ]

बसी
(प्रजा) सुख से रहने लगी।
उ.- सुबस बसी मथुरा ता दिन ते उग्रसेन बैठायौ-सारा. ५३३।
क्रि. अ.
[हिं. बसना]

बसीकर
वश में करनेवाला।
वि.
[सं. वशीकर]

बसीकरन
तंत्र के चार प्रकारों (मारण, मोहन, वशीकरण और उच्चाटन) में एक, मणि, मंत्र या औषध द्वारा किसी को वश में करने का प्रयोग।
उ.- मोहन, मुर्छन, बसीकरन पढ़ि अग मिति देह बढाऊँ-१०-४९।
संज्ञा
[सं. वशीकरण]

बसीठ
दूत, संदेशवाहक।
उ.- (क) अति सठ ढीठ बसीठ स्याम को हमैं सुनावत गीत। (ख) मैं कुल-कानि किये राखति हौं, ये हठि होत बसीठ-पृ. ३३४ (३६)।
संज्ञा
[सं. अवसृष्ट, प्र. अवसिट्ठ=भेजा हुआ]


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